विपक्षी दायरे में आयोग की निष्पक्षता पर संदेह गहराता जा रहा है। आम चुनाव के दौर समय ऐसी धारणाएं लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। ऐसे में यह जिम्मेदारी आयोग पर है कि वह विपक्षी आरोपों या धारणाओं को बेबुनियाद साबित करे।
राष्ट्रीय राजधानी में तृणमूल कांग्रेस पार्टी के सांसदों और कार्यकर्ताओं ने निर्वाचन आयोग के दफ्तर पर धरना दिया। वहां उन्हें हिरासत में लिए जाने के बाद एक सांसद ने आरोप लगाया कि आयोग निष्पक्ष ढंग से काम नहीं कर रहा है। वह आम चुनाव में सभी दलों को समान धरातल मुहैया कराने का फर्ज नहीं निभा रहा है। इसके पहले डीएमके एक चर्चित नेता ने एक इंटरव्यू में आयोग पर घोर अयोग्यता का इल्जाम लगाया।
उन्होंने तमाम आधुनिक तकनीक के बीच आम चुनाव की प्रक्रिया को 80 दिन तक चलाने को इस कथित अयोग्यता की मिसाल बताया। उधर कांग्रेस पार्टी अपने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ आयोग के मुख्यालय गई और उसके चुनाव घोषणापत्र के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को लेकर शिकायत दर्ज कराई। मोदी ने कहा था कि कांग्रेस के घोषणापत्र के हर पेज पर मुस्लिम लीग की छाप है। इसे तथ्यहीन और आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन बताते हुए कांग्रेस ने मोदी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
पहली नजर में कांग्रेस के आरोप में दम नजर आता है। ऐसे में अब निगाहें निर्वाचन आयोग पर टिकी हैं कि वह प्रधानमंत्री के खिलाफ क्या कार्रवाई करता है। आम आदमी पार्टी (आप) की नेता आतिशी ने दो रोज पहले ही प्रेस कांफ्रेंस कर इल्जाम लगाया था कि उनकी पार्टी के नेताओं पर भाजपा की शिकायत पर आयोग 12 घंटों के अंदर कार्रवाई करता है और इसकी जानकारी पहले से भाजपा को लीक कर दी जाती है, जबकि आप की शिकायतों पर टाल-मटोल का रुख अपनाया जाता है।
तो कुल मिलाकर विपक्षी दायरे में आयोग की निष्पक्षता पर संदेह गहराता जा रहा है। जब देश आम चुनाव के महत्त्वपूर्ण दौर में है, तब ऐसी धारणाएं लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। ऐसे में यह जिम्मेदारी आयोग पर है कि वह विपक्षी आरोपों या धारणाओं को बेबुनियाद साबित करे। ऐसा वह अपनी कार्रवाइयों के मामले में समान रुख अपना कर और हर तरफ से आने वाली शिकायतों पर समान तत्परता दिखाकर कर सकता है। फिलहाल, मोदी के खिलाफ दर्ज हुई शिकायत उसके पास एक टेस्ट केस के रूप में मौजूद है।