अब जबकि 2025 का चुनाव बमुश्किल पांच महीने दूर है, लगता है कि केंद्र ने अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए केजरीवाल को सत्ता से हटाने की व्यूह रचना की है। दिल्ली में जल्द ही राष्ट्रपति शासन लगने की चर्चाएं जोरों पर हैं।
अरविंद केजरीवाल लंबे समय से केंद्र सरकार और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की आंख में कांटा है। उनसे “मुक्ति पाने” के लिए भाजपा ने कई बार जोर लगाया, लेकिन अब तक नाकाम रही है। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने आम आदमी पार्टी को हराने की कोशिश में अपनी पूरी ताकत लगाई थी। लेकिन अब जबकि 2025 का चुनाव बमुश्किल पांच महीने दूर है, लगता है कि केंद्र ने अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए केजरीवाल और आ.आ.पा. को सत्ता से हटाने की व्यूह रचना की है।
भाजपा पिछले कई महीनों से कहती आ रही है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले से जुड़े आरोपों के चलते जेल में होने के बावजूद इस्तीफा नहीं दे रहे हैं, जिससे दिल्ली में संवैधानिक संकट पैदा हो गया है। अगस्त में दिल्ली के भाजपा विधायकों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलकर उन्हें एक चिट्ठी सौंपी। इसमें मांग की गई कि ‘संवैधानिक संकट’ को देखते हुए दिल्ली सरकार को बर्खास्त किया जाए और राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राष्ट्रपति ने इस मामले पर कार्रवाई के लिए विधायकों की चिट्ठी केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दी है।
तब से सवाल उठ रहे हैं कि क्या दिल्ली में वाकई राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा। राष्ट्रपति शासन संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत लगाया जाता है। इस अनुच्छेद के मुताबिक राष्ट्रपति इस बात से आश्वस्त हों कि किसी राज्य में “संवैधानिक तंत्र भंग” हो चुका है, तो वे वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं। अनुच्छेद 356 केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू नहीं होता है। इसलिए दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए संविधान में भाग 239-एबी के तहत अलग प्रावधान है।
दिल्ली में पिछली बार राष्ट्रपति शासन फरवरी 2014 में लगाया गया था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में लोकपाल बिल पेश ना कर पाने की वजह से अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन वो अलग परिस्थिति थी। इस बार केंद्र ने ऐसा किया, तो इसे राजनीतिक कारणों से उठाया गया कदम माना जाएगा। इसलिए बेहतर होगा कि केंद्र पांच महीने का और सब्र दिखाए।