राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

दो पैमाने, दो निष्कर्ष

poverty report world bankImage Source: ANI

poverty report world bank: ऐसी रिपोर्टें कई दशक से जारी हो रही हैं। अब यह कहने का आधार है कि इनसे गरीबी की ठोस समझ बनाने में कोई मदद नहीं मिली है। इसलिए अब यह सवाल उठाने का वक्त है कि इन रिपोर्टों के पीछे मकसद क्या है?

also read: प्रियंका चोपड़ा ने पति निक के लिए रखा करवा चौथ का व्रत

वैश्विक गरीबी पर में विश्व बैंक की रिपोर्ट

बीते हफ्ते के आरंभ में वैश्विक गरीबी पर में विश्व बैंक की रिपोर्ट आई। सप्ताहांत में संयुक्त राष्ट्र ने इसी संबंध में अपनी रिपोर्ट जारी की। विश्व बैंक विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी स्थित ऑक्सफॉर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव पिछले कई वर्षों से गरीब लोगों की संख्या के बारे में अपना साझा अनुमान जारी कर रहे हैं। अपनी ताजा रिपोर्ट में उन्होंने भारत के बारे में कहा है कि यहां 23 करोड़ 40 लाख लोग चरम गरीबी में जी रहे हैं। विश्व बैंक ने ये संख्या 13 करोड़ 40 लाख बताई थी। ये दोनों आधिकारिक संस्थाएं हैं। इनके अलावा कुछ एनजीओ भी अपना अनुमान जारी करते हैं। उनसे भी अलग संख्या सामने आती है।

रिपोर्टों को तैयार करने के पीछे मकसद

ऐसी रिपोर्टें कई दशक से जारी हो रही हैं। इसलिए अब यह कहने का आधार है कि इनसे गरीबी को समझने या उससे लोगों को मुक्ति दिलाने के बारे में कोई ठोस सोच नहीं बनती है। उलटे भ्रम पैदा होता है। इसलिए अब यह सवाल उठाने का वक्त है कि इन रिपोर्टों को तैयार करने के पीछे मकसद क्या है? उद्देश्य दुनिया में गरीबी खत्म करना है, तो फिर ये संस्थाएं न्यूनतम और भ्रामक पैमाने क्यों अपनाती हैं? नव-उदारवादी दौर के पहले एक मान्य फॉर्मूला व्यक्तियों को उपलब्ध कैलोरी होती थी। भारत में गांवों में जिन लोगों को रोजाना 2200 और शहरों में 2100 से कम कैलोरी उपलब्ध थी, उन्हें गरीब समझा गया था।

गरीब लोगों ने अपने भोजन में कटौती

अनेक गंभीर अर्थशास्त्रियों दिखाया है कि आज इस कैलोरी उपलब्धता से वंचित लोगों की संख्या तब से ज्यादा है। वजह यह है कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवहन जैसी सेवाओं का निजीकरण होने का बोझ लोगों की निजी आमदनी पर पड़ा है। इस कारण उन्हें अपनी जरूरतों में कटौती करनी पड़ी है। इस बात के आधिकारिक आंकड़े हैं कि बहुत से गरीब लोगों ने अपने भोजन में कटौती की है। जबकि शिक्षा एवं इलाज जैसी अनिवार्यताओं पर बढ़े खर्च की गणना खर्च क्षमता में करके विश्व बैंक करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से उठा बता देता है। ऐसी ही विसंगतियां संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भी हैं। फिर भी ऐसी रिपोर्टों का सिलसिला जारी है।

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *