चंद्र बाबू नायडू ने नायाब फॉर्मूला दिया है। सीआईआई) के एक समारोह में उन्होंने कहा कि अगर देश के सबसे धनी 10 फीसदी लोग सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों को “गोद” ले लें, तो समस्या खुद हल हो जाएगी!
गरीबों को पहले तो चंद्र बाबू नायडू का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि उन्होंने उनके वजूद से इनकार नहीं किया। जिस दौर में नीति आयोग जैसी सरकारी संस्थाओं और सरकार प्रायोजित विशेषज्ञों के बीच होड़ गरीबी का प्रतिशत कम-से-कम बताने की लगी हो, उन्होंने इतना तो माना कि भारत में लगभग 20 फीसदी आबादी अभी गरीबी रेखा के नीचे है। यह बात दीगर है कि उन्होंने गरीबी दूर करने का जो फॉर्मूला बताया, उसे गरीब लोग अपने साथ मज़ाक समझ सकते हैं। इसलिए कि जो लोग गरीब कल्याण की किसी भी ठोस सोच पर सीधा हमला बोल देते हों, उनसे ही उन्होंने उम्मीद जोड़ी कि वे गरीबी हटाने की जिम्मेदारी उठाएंगे। टीडीपी अध्यक्ष ने कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) के एक समारोह में कहा कि अगर देश के सबसे धनी 10 फीसदी लोग सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों को “गोद” ले लें, तो समस्या हल हो जाएगी। उन्होंने कहा- “आज मैं आपके सामने एक प्रस्ताव रख रहा हूं। गैर-बराबरी लगातार बढ़ रही है। देश में गरीब लोग भी हैं। क्या आप उनके लिए कुछ कर सकते हैं? इसके लिए मैं पी-4 का प्रस्ताव रख रहा हूः पब्लिक-प्राइवेट-पीपुल्स पार्टनरशिप।” यानी नव-उदारवादी दौर में प्रचलित ट्रिपल पी में उन्होंने एक पी और जोड़ दिया है।
तजुर्बा यह है कि ट्रिपल पी सार्वजनिक संसाधानों को निजी (यानी कॉरपोरेट) हाथों में सौंपने का माध्यम साबित हुआ है। तो अब नायडू ऐसी योजनाओं से उत्तरोत्तर समृद्ध हुए लोगों में कुछ वैसी भावना जगाना चाहते हैं, जिसे सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण ने “अच्छाई की प्रेरणा” कहा था। यह प्रेरणा जग जाए, तो सरकारी नीतियों के कारण जिन लोगों की तिजोरी में धन इकट्ठा हुआ है, वे उसका कुछ हिस्सा गरीबों को भी लौटा सकते हैं! बहरहाल, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री इतने वरिष्ठ तो हैं कि उन्हें विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के कुल तजुर्बे की जानकारी होगी। उसकी रोशनी में ऐसे फॉर्मूले को जुमला के अलावा और क्या कहा जा है? हां, इसका यह फायदा जरूर है कि इससे वेल्थ और उत्तराधिकार टैक्स लगाकर गैर-बराबरी दूर करने की सार्वजनिक पहल के तकाजे से थोड़े समय के लिए ध्यान हट सकता है।