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शांति के पक्ष में!

साझा घोषणापत्र में शामिल यह वाक्य अहम हैः भारतीय पक्ष ने दोहराया कि ध्यान वार्ता एवं कूटनीति के जरिए शांतिपूर्ण समाधान पर केंद्रित किया जाना चाहिए और इस प्रक्रिया में सभी ‘हितधारकों’ को शामिल किया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सात घंटों की यूक्रेन यात्रा के दौरान दो स्पष्टीकरण दिए गए। मोदी ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत तटस्थ नहीं है, बल्कि वह हमेशा ही शांति के पक्ष में रहा है। इस बात से यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की ने क्या संकेत ग्रहण किया, यह स्पष्ट नहीं है। दूसरी सफाई विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जुलाई में मास्को यात्रा के दौरान मोदी के रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन से गले लगने के बारे में दी। कहा कि ऐसा करना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। आपकी (यूक्रेन की) संस्कृति में ऐसी परंपरा नहीं होगी, लेकिन हमारी संस्कृति में जब दो लोग मिलते हैं, तो गले लगते हैं। कीव में मोदी जेलेन्स्की के भी गले लगे। इस तरह उन्होंने संतुलन बनाने का संदेश दिया। संभवतः यह संदेश जेलेन्स्की से ज्यादा पश्चिमी राजधानियों के लिए है, जहां मोदी की रूस यात्रा पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। वहां उन तस्वीरों से भी तब पैदा हुआ असंतोष कुछ शांत होगा, जिनमें मोदी उन बच्चों के स्मारक पर श्रद्धांजलि देते देखे गए, जिनकी मौत कथित रूप से रूसी हमलों में हुई है।

शायद यह एकमात्र ऐसा कदम है, जिससे मास्को में कुछ नकारात्मक प्रभाव पैदा हुआ हो। इसलिए कि यह यूक्रेन के इस दावे पर भारत की मुहर के रूप में देखा जाएगा कि रूस ने बच्चों को निशाना बनाया है। रूस ऐसे दावों का खंडन करता रहा है। वैसे जहां तक साझा घोषणापत्र की बात है, उसमें संतुलन बनाए रखा गया। उसमें शामिल यह वाक्य अहम है- भारतीय पक्ष ने दोहराया कि ध्यान वार्ता एवं कूटनीति के जरिए शांतिपूर्ण समाधान पर केंद्रित किया जाना चाहिए और इस प्रक्रिया में सभी ‘हितधारकों’ को शामिल किया जाना चाहिए। स्पष्टतः यहां जोर रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत से समाधान निकालने पर है। मगर यह अव्यावहारिक फॉर्मूला है। जब तक अमेरिका और नाटो रूस से सीधी बातचीत के लिए तैयार नहीं होते, बात आगे बढ़ने की संभावना कम ही है। फिलहाल तो रूस का रुख और गरम हो गया है। फिलहाल, भारत ने अपने बारे में पश्चिम में बनी गलतफहमियों को दूर करने का ठोस प्रयास किया है।

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