नरेंद्र मोदी सरकार के कई हालिया कदमों को अमेरिकी धुरी के साथ भारत के संबंध मजबूत रखने की उसकी खास पहल के रूप में देखा गया है। इसीलिए अडानी को मिली राहत को भी इस क्रम में देखा जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपने अटार्नी जनरल को विदेश भ्रष्ट आचरण अधिनियम (एफसीपीए) के तहत जारी तमाम मुकदमों की समीक्षा का आदेश दिया है। साथ ही कहा है कि आगे इस कानून के तहत कोई नया मामला शुरू ना किया जाए। यह खबर आते ही भारतीय बाजारों में अडानी ग्रुप के शेयरों के भाव उछल गए। स्पष्ट है कि इसे अडानी ग्रुप के लिए बड़ी राहत माना गया है। ये बात नजरअंदाज नहीं की गई है कि ट्रंप ने यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात से ठीक पहले उठाया है। इसके पहले भारत की ओर से ट्रंप प्रशासन की इच्छाओं के अनुरूप कई कदम उठाए गए। तकरीबन 30 वस्तुओं पर आयात शुल्क घटाने के अलावा भारत ने अपने परमाणु उत्तरदायित्व अधिनियम में भी बदलाव का एलान किया।
इस कानून के कारण अमेरिकी परमाणु कंपनियां भारत को रिएक्टर एवं अन्य उपकरण बेचने से बचती रही हैं। उधर पेरिस में अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वान्स से मुलाकात के दौरान मोदी ने अमेरिका के परमाणु उद्योग में भारतीय निवेश बढ़ाने की पेशकश की। ट्रंप प्रशासन की सर्व-प्रमुख प्राथमिकता दुनिया भर से निवेश बटोरने की है। ऐसे में इस पहल का महत्त्व खुद जाहिर है। यहां यह याद करना उचित होगा कि पिछले नवंबर में ट्रंप के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर बधाई देते हुए गौतम अडानी ने अमेरिका के ऊर्जा क्षेत्र में दस बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा की थी। अंबानी ग्रुप पहले ही वहां अक्षय उर्जा क्षेत्र में निवेश कर चुका है।
मोदी और ट्रंप दोनों की पहचान निवेशकों एवं उद्योगपतियों के साथ तालमेल बना कर शासन करने वाले नेता के रूप में है। ऐसे में प्रधानमंत्री की पहल को गंभीरता से लिया गया है। साथ ही मोदी सरकार के उपरोक्त कदमों तथा ट्रंप के भारत विरोधी बयानों पर उसके प्रतिक्रिया ना जताने के उसके रुख को अमेरिकी धुरी के साथ भारत के संबंध मजबूत रखने की पहल के रूप में देखा गया है। इसीलिए अडानी को मिली राहत को भी इस क्रम में देखा जा रहा है। अब देखना होगा, कि क्या पन्नू मामले में भी ट्रंप सरकार से भारत को राहत मिलती है?