ट्रंप के दौर में उभरती सूरत भारत के अनुकूल नहीं दिखती। प्रधानमंत्री आज अमेरिका जाने वाले हैं। मगर उससे पहले ट्रंप के कई कदमों ने भारत को असहज कर रखा है। इनमें हालिया एक कदम चाबहार बंदरगाह पर घोषित अमेरिकी नीति है।
अमेरिका ने अवैध आव्रजकों को जिस अपमानजनक ढंग से भारत लौटाया, उससे देश में नरेंद्र मोदी सरकार की भारी किरकिरी हुई। इस मसले पर सरकार के बेहद नरम रुख ने देश के एक बड़े जनमत को बेचैन किया है। मगर यह अकेला मुद्दा नहीं है। कुल मिलाकर डॉनल्ड ट्रंप के दौर में उभरती सूरत भारत के अनुकूल नहीं दिखती। प्रधानमंत्री अब अमेरिका जा रहे हैं, जहां उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाक़ात होगी। मगर उससे पहले ट्रंप के कई कदमों ने भारत को असहज किया है।
इनमें एक चाबहार बंदरगाह के मामले में ट्रंप का नया फैसला है। भारत ईरान में चाबहार पोर्ट बना रहा है। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चाबहार पोर्ट बनाने को लेकर भारत को छूट दी थी, लेकिन अब रुख बदल गया है। ह्वाइट हाउस ने ईरान पर ‘अधिकतम दबाव’ बनाने की नीति घोषित की है। उससे संबंधित बयान में कहा गया है- ‘जो देश ईरान को किसी भी तरह से आर्थिक फ़ायदा पहुंचाते हैं, उन्हें प्रतिबंध से मिली छूट में या तो परिवर्तन होगा या उसे रद्द कर दिया जाएगा। इसमें ईरान का चाबहार पोर्ट भी शामिल है।’ ट्रंप ने भारत से आयात होने वाली वस्तुओं पर नए शुल्क लगाने की धमकी दे रखी है, हालांकि अभी तक उसने ये कदम उठाया नहीं है। ऐसा शायद इसलिए कि भारत ने खुद ही अमेरिकी वस्तुओं पर आयात शुल्क घटाने शुरू कर दिए हैँ।
साथ ही भारत ने अमेरिका से तेल आयात के भी संकेत दिए हैं। अमेरिकी मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक अमेरिका को खुश रखने के लिए भारत रूस से हथियारों के साथ-साथ कच्चे तेल की ख़रीदारी भी घटा सकता है। इन रिपोर्टों के मुताबिक भारत संभवतः ट्रंप प्रशासन से आशा करेगा कि वह उद्योगपति गौतम अडानी के ख़िलाफ़ चल रहे क़ानूनी मामले में राहत दिलाने का प्रयास करे और वह आगे अपनी ज़मीन पर किसी अमेरिकी नागरिक को मारने की साज़िश का आरोप भारत पर ना लगाए। मगर ट्रंप जैसे मूड में हैं, क्या भारत उनसे ऐसी सौदेबाजी कर पाएगा? यह बड़ा सवाल है, जिस पर कुछ संकेत मोदी की वॉशिंगटन यात्रा के दौरान मिलेंगे।