Parliament winter session: विपक्ष ने राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का एलान किया है। संख्या बल विपक्ष के साथ नहीं है, यह जानते हुए भी विपक्ष ने इसकी तैयारी है, तो स्पष्टतः इसके जरिए वह एक खास राजनीतिक संदेश देना चाहता है।
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संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच खाई इतनी चौड़ी हो गई है कि उसके किसी समाधान की गुंजाइश फिलहाल नजर नहीं आती।
पीठासीन अधिकारियों के व्यवहार और उनकी मंशा को लेकर भी विपक्ष के मन में संदेह गहरा गया है। इसलिए उनकी मध्यस्थता से भी कोई हल निकलने की गुंजाइश नहीं दिखती।
संदेह का आलम यह है कि राज्यसभा में विपक्षी दलों ने सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का एलान किया है।
संख्या बल विपक्ष के साथ नहीं है, यह जानते हुए भी अगर विपक्ष ने इस प्रस्ताव की तैयारी है, तो स्पष्टतः इसके जरिए वह एक खास राजनीतिक संदेश देना चाहता है।
विपक्ष का शक बिल्कुल निराधार
विपक्ष का शक बिल्कुल निराधार है, यह नहीं कहा जा सकता। कई बार राज्यसभा की कार्यवाही देख रहे लोगों को भी महसूस होने लगता है कि सभापति दोनों पक्षों के साथ एक जैसा सलूक नहीं कर रहे हैं।
अफसोसनाक यह है कि सभापति ने ऐसी धारणाओं को बेबुनियाद साबित करने की कोई जरूरत नहीं समझी है- जाहिर है, उन्होंने इसकी कोई पहल भी नहीं की है।(Parliament winter session)
ताजा विवाद अडानी मामले को लेकर उठा है। विपक्षी सांसदों के मुताबिक जब कभी उन्होंने अडानी का जिक्र किया, सभापति ने इसकी इजाजत नहीं।
लेकिन इसी प्रकरण में गांधी परिवार के जॉर्ज सोरोस नेटवर्क से कथित संबंध के आरोपों को लगाने के लिए सत्ता पक्ष को पर्याप्त मौका दिया है। कांग्रेस जिस तरह से अडानी का मामला संसद में उठा रही है, उस पर कई सवाल हो सकते हैं।
मगर अपेक्षित यह है कि पीठासीन अधिकारी इस मामले में दोनों पक्ष के लिए समान नजरिया अपनाएं।
लोकसभा में भी गांधी परिवार के खिलाफ आरोपों को लगाने का पर्याप्त मौका सत्ता पक्ष के सांसदों को दिया गया।
बेहतर होता, उनसे इस आरोप के पक्ष में प्रामाणिक साक्ष्य पेश करने का निर्देश भी दिया जाता।
संसद में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर तो किसी को भी इल्जाम लगाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए, ना ही ऐसी परंपरा रही है।
इस मसले ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव और बढ़ा दिया है। इसका शिकार संसदीय कार्यवाही बन रही है।