कुछ नौजवानों ने संसद की सुरक्षा को भंग करने की योजना बनाई। वे इसमें सफल भी हो गए। यह देश की कानून-व्यवस्था मशीनरी पर एक प्रतिकूल टिप्पणी है कि इतनी आसानी से सबसे बड़े स्थलों और सबसे बड़े मौकों पर सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लग जाती है।
संसद की सुरक्षा-व्यवस्था संसद पर 22 साल पहले हुए भीषण हमले की बरसी के दिन भंग हुई। यह बात आसानी से गले नहीं उतरती कि सुरक्षा में ऐसी लापरवाही कैसे हो सकती है। खासकर यह देखते हुए कि खालिस्तानी उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नूं ने धमकी दे रखी थी कि 13 दिसंबर या उससे पहले फिर संसद को निशाना बनाया जाएगा। अब तक जितनी जानकारियां सामने हैं, उनसे ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता कि जिन लोगों ने संसद में घुसपैठ की, उनका पन्नूं या किसी अन्य राजनीतिक संगठन से संबंध है। पुलिस के हवाले से मीडिया में आई सूचनाओं के मुताबिक संसद की सुरक्षा-व्यवस्था भंग करने में शामिल सभी छह लोग देश के अलग-अलग हिस्सों के हैं। उनमें समान पहलू सिर्फ यह है कि वे पढ़े-लिखे हैं जिन्हें अपनी योग्यता के अऩुरूप काम नहीं मिला, वे बेरोजगारी से परेशान रहे, और सभी शहीद भगत सिंह के प्रशंसक हैं। वे सभी सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में आए और देश के मौजूदा हालात से अपने असंतोष को जताने के लिए उन्होंने संसद की सुरक्षा को भंग करने की योजना बनाई। वे इसमें सफल भी हो गए।
यह देश की कानून-व्यवस्था मशीनरी पर एक प्रतिकूल टिप्पणी है कि इतनी आसानी से सबसे बड़े स्थलों और सबसे बड़े मौकों पर सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लग जाती है। अभी एक महीना नहीं गुजरा, जब अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में क्रिकेट विश्व कप के फाइनल मैच के दौरान एक ऑस्ट्रेलियाई नौजवान फिलस्तीन की आजादी के समर्थन में संदेश देने के लिए तमाम सुरक्षा-व्यवस्था को धता बताते हुए मैदान में घुस गया। ऐसा उस रोज हुआ, जिस दिन खुद प्रधानमंत्री मोदी वहां पहुंचने वाले थे। बहरहाल, संसद पर हुई घटना के साथ एक दूसरा पहलू भी जुड़ा है। इसका संबंध सामाजिक और आर्थिक सुरक्षाओं से है। ये घटना “विकसित भारत” के तमाम शोर के बीच जमीनी स्तर पर रोजमर्रा की बढ़ती मुश्किलों की ओर ध्यान खींचती है। ये मुश्किलें अब कई लोगों- खासकर नौजवानों में असंतोष पैदा कर रही हैं। यह साफ है कि इस हकीकत का सही नजरिए से सामना किए बगैर बाकी सुरक्षाओं को सुनिश्चित करना कठिन हो जाएगा।