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चिंताजनक है यह तनाव

दोनों पक्ष के नेता एक-दूसरे के लिए अपशब्दों तक इस्तेमाल कर रहे हैं, तो समझा जा सकता है कि देश का सियासी माहौल किस हद तक बिगड़ चुका है। विरोधी खेमों में होने के बावजूद एक-दूसरे के लिए सम्मान का भाव रखने की परंपरा तार-तार हो गई है।

संसद का मानसून सत्र राजनीतिक तनाव को असाधारण रूप से बढ़ाते हुए खत्म हुआ है। इसकी चरण परिणति दोनों सदनों से सदस्यों का निलंबन है। सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह का निलंबन विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक बढ़ा दिया गया। उसी रोज इस पार्टी के एक अन्य सांसद राघव चड्ढा को भी इसी तरह अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दिया गया। उधर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी निलंबित कर दिए गए। तीनों निलंबनों के कारण अलग-अलग हैं, लेकिन जिन कारणों से यह कदम उठाया गया, वे भारत में लंबे समय से संसदीय परंपरा का हिस्सा रहे हैं। इस बीच पूरा सत्र मणिपुर के मुद्दे पर पक्ष- विपक्ष में टकराव में उलझा रहा। आखिर में अविश्वास प्रस्ताव पेश कर विपक्ष ने इस पर चर्चा कराई, लेकिन बहस के दौरान जैसे शब्दों का इस्तेमाल एक-दूसरे के लिए हुआ और प्रधानमंत्री ने जवाब देते समय अपना जो चिर-परिचित तेवर दिखाया, उससे माहौल और गरमा गया।

अब दोनों पक्ष के नेता एक दूसरे के लिए अपशब्दों तक इस्तेमाल कर रहे हैं, तो समझा जा सकता है कि देश का सियासी माहौल किस हद तक बिगड़ चुका है। विरोधी खेमों में होने के बावजूद एक-दूसरे के लिए सम्मान का भाव रखने की परंपरा तार-तार हो गई है। आम तजुर्बा है कि ऐसे माहौल में लोकतंत्र का टिके रहना कठिन हो जाता है। इसी बीच सरकार ने जिस ताबड़तोड़ ढंग से- बिना बहस और प्रावधानों की पड़ताल की जांच करने का मौका दिए- तमाम महत्त्वपूर्ण विधेयक पारित कराए, उससे अविश्वास की खाई और बढ़ गई है। सत्र के आखिरी दिन भारतीय दंड संहिता, भारतीय आपराधिक संहिता और साक्ष्य अधिनियम को बदलने का बिल अकस्मात ढंग से पेश कर दिए जाने से आशंकाएं और गहराई हैं। नई संहिताओं का नाम हिंदी में रखने के कारण दक्षिणी राज्यों से आक्रोश भरी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं। संभवतः यह नहीं होता, अगर पहले राष्ट्रीय बहस के जरिए आम सहमति बनाने की कोशिश की गई होती। जबकि फिलहाल तमाम सहमतियां खंडित होती नजर आ रही हैं। यह गहरी चिंता की बात है।

By NI Editorial

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