क्या पेरिस ओलिंपिक में पिछड़ने पर अपने देश में किसी गंभीर चर्चा का संकेत है? उलटे सरकारी नैरेटिव यह है कि पहले से प्रगति हुई है। अब सरकार और ज्यादा शक्ति लगाएगी। खेल ढांचे में खामियों की कहीं चर्चा नहीं है।
पेरिस ओलिंपिक खेलों में जर्मनी के खिलाड़ियों ने कुल 33 पदक जीते- 12 स्वर्ण पदक, 13 रजत और आठ कांस्य पदक। टोक्यो ओलिंपिक से तुलना करें, तो जर्मनी ने दो ज्यादा गोल्ड मेडल जीते। इसके बावजूद देश में मायूसी है। सार्वजनिक चर्चाओं में विचार का प्रमुख मुद्दा यह बना है कि देश पदक तालिका में एक पायदान नीचे क्यों आ गया? इस चर्चा से बने दबाव के बीच जर्मन ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष थॉमस वाइकेर्ट को सफाई देनी पड़ी है। एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने प्रदर्शन सुधारने के लिए कई कदमों की चर्चा की। कहा कि देश को ज्यादा संख्या में कोच चाहिए और प्रशिक्षकों के लिए बेहतर वेतन होना चाहिए। उन्होंने कहा- “हम एक्सेल स्प्रेडशीट बनाते हैं। ट्रेनिंग करते हैं। लेकिन इसमें खामियां हैं।” अब इसकी तुलना में अपने देश से करें। क्या यहां पेरिस में पिछड़ने पर किसी गंभीर चर्चा का संकेत है?
उलटे सरकारी नैरेटिव यह है कि पहले से प्रगति हुई है और अब सरकार और ज्यादा शक्ति लगाएगी। खेल ढांचे में खामियों की कहीं चर्चा नहीं है। जबकि जर्मन मीडिया में अधिक सफल देशों के खेल ढांचे पर गौर किया जा रहा है। पश्चिम में आम तौर पर चीन को लेकर वैर भाव बढ़ा है। लेकिन ओलिंपिक में चीन को मिली बड़ी सफलता पर वहां चर्चा हो रही है। इस ओर ध्यान खींचा गया है कि चीन में छोटी उम्र से ही बच्चों को अलग-अलग खेलों में प्रशिक्षित करने का व्यापक राष्ट्रीय ढांचा बनाया गया है। इस ओर भी ध्यान दिलाया गया है कि अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में ज्यादा पदक जीतने को चीन में राष्ट्रीय गौरव से जोड़ कर देखा जाता है। अमेरिका का ढांचा कॉरपोरेट केंद्रित है। उसकी बदौलत अमेरिका अपना पहला नंबर बनाए रखने में कामयाब है। जर्मनी में सरकार और कॉरपोरेट सेक्टर दोनों की भूमिका रही है। इसकी बदौलत जर्मनी की छवि खेल महाशक्ति के रूप में बनी थी। लेकिन हाल में उसके प्रदर्शन में गिरावट आई है। इसको लेकर वहां के लोग बेचैन हैं। भारत में भी वैसी ही बेचैनी की जरूरत है। ऐसा हो, तभी निराशा की बार-बार लिखी जाने वाली कहानियों से निज़ात मिल सकेगी।