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भारत का दुर्भाग्य

Vinesh Phogat Disqualified

Vinesh Phogat Disqualified: ओलिंपिक जैसे सर्वोच्च खेल मंच पर एक भारतीय की कामयाबी-नाकामी पर परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाएं हों, तो उससे भारत के बारे में क्या समझ बननी चाहिए? हम किस मुकाम पर आ गए हैं, जहां कुछ भी तुच्छ सियासत से ऊपर नहीं है?

विनेश फोगट को जिन हालात में कुश्ती से संन्यास लेना पड़ा, बेशक यह उनके साथ-साथ इस देश की भी बदकिश्मती है। किंतु एक एथलीट की सफलता और विफलता पर यह देश जिस तरह बंटा नज़र आया, उसे भारत का और भी बड़ा दुर्भाग्य माना जाएगा।

मंगलवार को विनेश ने जब असाधारण प्रदर्शन करते हुए कुछ घंटों के अंतराल पर तीन प्रतिद्वंद्वियों को धराशायी कर दिया, तो अपेक्षित यह था कि उस पर सारा देश एक स्वर में जश्न मनाता। आखिरकार उन कामयाबियों के साथ ओलिंपिक पदकों की खातिर तरसते भारत के लिए कम-से-कम एक रजत तय हो गया था।

मोदी सरकार की हार के रूप पेश किया

मगर हुआ यह कि विनेश की सफलता विपक्ष के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर निशाना साधने का औजार बन गई। विपक्षी और सिविल सोसायटी के एक बड़े हलके में इसे मोदी सरकार की हार के रूप पेश किया गया।

स्पष्टतः संदर्भ पिछले साल के विरोध प्रदर्शनों का था, जिसमें विनेश सहित कई महिला पहलवानों ने कुश्ती परिसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे। उसके बावजूद सत्ताधारी दल बृजभूषण शरण सिंह के साथ खड़ा रहा। बहरहाल, अगली सुबह तक सारा नज़ारा बदल गया।

देश को एंटी-क्लाइमेक्स के रू-ब-रू होना पड़ा। तो अब सोशल मीडिया पर जश्न मनाने का की बारी भाजपा समर्थक ट्रोल्स की थी। लेकिन ओलिंपिक जैसे सर्वोच्च खेल मंच पर एक भारतीय की कामयाबी और नाकामी पर ऐसी परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाएं हों, तो उससे इस देश के बारे में क्या समझ बननी चाहिए?

हम किस मुकाम पर आकर खड़े हो गए हैं, जहां कुछ भी तुच्छ सियासत से ऊपर नहीं है? यह गहरे आत्म-मंथन का विषय है कि ऐसी मानसिकताओं के बारे में इस देश और इसकी अगली पीढ़ियों का क्या भविष्य होगा? कला और साहित्य के क्षेत्र में भारतीयों की उपलब्धियों के प्रति ऐसा तीखा बंटवारा पहले ही हो चुका है।

बहरहाल, उन क्षेत्रों में राजनीतिक विचारधारा एक महत्त्वपूर्ण तत्व होती है, इसलिए उसका एक संदर्भ हो सकता है। मगर खेल में तो अब तक यही माना जाता था कि खिलाड़ी सारे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। विनेश फोगट के मामले ने यह भ्रम भी तोड़ दिया है।

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By NI Editorial

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