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पाकिस्तान में उथल-पुथल

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पाकिस्तान में अशांति के लिए इससे खराब मौका नहीं हो सकता था। 15-16 अक्टूबर को वहां शंघाई सहयोग संगठन की शासनाध्यक्ष परिषद की बैठक होनी है, जिसमें इसके अनेक नेता आ रहे हैं। मगर उससे पहले वहां अफरा-तफरी का नजारा है। 

साफ है कि पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व ने पास-पड़ोस की घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखा है। वरना, अगर वह बांग्लादेश और श्रीलंका की घटनाओं से सीखती, तो उसे अंदाजा लग सकता था कि जनमत के बड़े हिस्से की उपेक्षा करते हुए मनमाने ढंग से राज करना कितना जोखिम भरा हो सकता है। दरअसल, खुद पाकिस्तान की मई 2023 की घटनाओं से सही सीख वह लेती, तो उसे अंदाजा लग सकता था कि देश में उसकी प्रतिष्ठा कितनी गिर चुकी है और लोगों में असंतोष किस हद तक उफान पर है। तब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पहली गिरफ्तारी के बाद हजारों लोग सड़कों पर आए थे और खासकर उन्होंने सेना से संबंधित ठिकानों और प्रतीक चिह्नों को निशाना बनाया। उसके बाद से खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) का जोरदार दमन जारी है।

यहां तक कि इस वर्ष आरंभ में हुए कथित आम चुनाव में पीटीआई को भाग नहीं लेने दिया। इसके बावजूद निर्दलीय रूप में लड़ते हुए इस पार्टी के अनेक नेता विजयी हो गए। मगर सरकार बनाने में इस समूह की पूरी अनदेखी की गई। इस बीच अनेक मामलों में न्यायपालिका से राहत मिलने के बावजूद नए-नए मुकदमों में उलझा कर इमरान खान को जेल में ही रखा गया है। इससे खासकर उनके समर्थकों में गुस्सा भरना लाजिमी है। पीटीआई खैबर पख्तूनवा प्रांत में सत्ता में है। इस तरह उसके पास एक ऐसा स्थान है, जहां से वह अपने विरोध प्रदर्शनों को संयोजित कर सकती है।

शनिवार को पीटीआई के हजारों समर्थक इस्लामाबाद की सड़कों पर उतरे। वहां अफरा-तफरी का नज़ारा रहा। रविवार को प्रदर्शन जारी रहे। सरकार का आरोप है कि इन प्रदर्शनों में खैबर पख्तूनवा के पुलिसकर्मियों ने भी हिस्सा लिया है। पाकिस्तान में अशांति के लिए इससे खराब मौका नहीं हो सकता था। 15-16 अक्टूबर को वहां शंघाई सहयोग संगठन की राज्याध्यक्ष/ शासनाध्यक्ष परिषद की बैठक होनी है, जिसमें इस संगठन के अनेक सदस्य देशों के नेता आ रहे हैं। लेकिन उसके ठीक पहले वहां अफरा-तफरी का नज़ारा है। इसका संदेश यह है कि पाकिस्तान की सेना सही सबक ले, वरना जन भावनाओं की उपेक्षा उसे भारी पड़ सकती है।

By NI Editorial

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