कानून के राज का सिद्धांत सभ्यता के विकास के साथ प्रचलन में आया, जिसकी बुनियादी मान्यता है कि कानून सबसे ऊपर है और कानून की निगाह में सभी बराबर हैं। प्रश्न यही है कि क्या नूंह में इस सिद्धांत का पालन हुआ है?
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा के नूंह में मुसलमानों के घर बुल्डोजर से ध्वस्त करने की कार्रवाई पर रोक लगाते हुए यह अहम सवाल पूछा कि क्या एक समुदाय विशेष के मकानों को ढाह कर “सरकार इथनिक क्लीजिंग” कर रही है? इस शब्द का संदर्भ बड़ा है। यह शब्द नाजी जर्मनी के समय प्रचलित हुआ था, जब हिटलर की सत्ता ने यहूदियों के सफाये का अभियान छेड़ा था। आज के भारत में किसी संवैधानिक न्यायालय को ऐसा प्रश्न पूछना पड़ा है, तो यह हम सबके लिए विचारणीय है कि क्या हालात सचमुच इस मुकाम तक पहुंच चुके हैं? मीडिया रिपोर्टों से साफ है कि नूंह के दंगे में दोनों समुदायों के हिंसक तत्वों ने भागीदारी की। लेकिन बुल्डोजर की कार्रवाई एक समुदाय विशेष के मकानों पर हुई है।
उसमें एक दर्दनाक कहानी तो एक ऐसे व्यक्ति की सामने आई है कि जिसने असल में तीन हिंदुओं को अपने घर में छिपा कर उनकी जान बचाई थी। लेकिन बुल्डोजर ने उसके घर को भी नहीं बख्शा, जबकि हिंदू समुदाय के जिन लोगों को वहां संरक्षण मिला था वे पुलिस के सामने गुहार लगाते कि संबंधित व्यक्ति का दंगे में कोई भूमिका नहीं थी, बल्कि उसने अपने घर में आए हिंदुओं की आवभगत करते हुए उनकी जान बचाई। जब ऐसी घटनाएं हो रही हों, तब संवैधानिक सोच वाले किसी व्यक्ति के मन में वैसा सवाल उठना लाजिमी हो जाता है, जो अब हाई कोर्ट ने पूछा है।
वैसे भी बुल्डोजर न्याय कानून के राज और इंसाफ के तमाम आधुनिक सिद्धांतों का खुला उल्लंघन है। इन सिद्धांतों के मुताबिक कार्यपालिका और पुलिस खुद यह तय नहीं कर सकती कि कौन दंगाई या दोषी है? उनका काम अभियोग लगाना है, जिस पर कोर्ट कानून में तय प्रावधानों के मुताबिक निर्णय देता है। इसीलिए बुल्डोजर न्याय असल में कानून के राज को ध्वस्त कर रहा है। कानून के राज का सिद्धांत सभ्यता के विकास के साथ प्रचलन में आया, जिसकी बुनियादी मान्यता है कि कानून सबसे ऊपर है और कानून की निगाह में सभी बराबर हैं। प्रश्न यही है कि क्या नूंह में इस सिद्धांत का पालन हुआ है?