निर्गुट सम्मेलन के बाद जारी घोषणापत्र में जो बातें कही गईं, वे इजराइल-फिलस्तीन के मौजूदा युद्ध के बारे में भारत के रुख से मेल नहीं खातीं। इसमें गजा में इजराइली कार्रवाई की दो टूक निंदा की गई, मगर हमास को कोई जिक्र नहीं किया गया।
शीत युद्ध के दौर में गुटनिरपेक्ष आंदोलन एक महत्त्वपूर्ण आवाज था। लेकिन सोवियत संघ के विखंडन के साथ चूंकि तत्कालीन एक गुट का विलोप हो गया, तो इस आंदोलन ने भी अपनी प्रासंगिकता खो दी। इसके बावजूद इस समूह को इससे जुड़े देशों ने जिंदा रखा और अब जबकि दुनिया फिर से भूमंडलीकरण की उलटी दिशा में चल पड़ी है, तो अचानक इसका शिखर सम्मेलन मीडिया की सुर्खियों में आया। भारत में इसको लेकर और जिज्ञासा पैदा हुई क्योंकि विदेश मंत्री जयशंकर 120 देशों की सदस्यता वाले इस समूह की शिखर बैठक में भाग लेने यूगांडा की राजधानी कंपाला गए। विदेश मंत्री ने सम्मेलन में ग्लोबल साउथ की एकता पर जोर दिया और इस मकसद को हासिल करने में निर्गुट आंदोलन की भूमिका की चर्चा की। बहरहाल, सम्मेलन के बाद जारी घोषणापत्र में जो बातें कही गईं, वे कम-से-कम इजराइल-फिलस्तीन के मौजूदा युद्ध के बारे में भारत के रुख से मेल नहीं खातीं। इसमें गजा में इजराइली कार्रवाई की दो टूक निंदा की गई, मगर हमास को कोई जिक्र नहीं किया गया। आतंकवाद की चर्चा सामान्य रूप में ही हुई और उसका विरोध किया गया। जबकि बीते सात अक्टूबर को इजराइल पर हमास के हमलों को भारत ने आतंकवाद बताया था और उसकी दो टूक निंदा की थी। घोषणापत्र में गजा में तुरंत युद्धविराम की मांग की गई, जबकि भारत वहां मानवीय आधार पर लड़ाई रोकने की वकालत करता रहा है। कहा जा सकता है कि कंपाला घोषणापत्र में इस समय ग्लोबल साउथ की आम सोच प्रतिबिंबित हुई। चूंकि घोषणापत्र साझा है, इसलिए यह आम अनुमान लगाया जाएगा कि भारत इसमें कही गई बातों से सहमत है। क्या सचमुच ऐसा है? इस बारे में भारतीय विदेश मंत्रालय को अवश्य जानकारी देनी चाहिए। भारतीय विदेश नीति के बारे में स्पष्टता बनाने के लिए यह अवश्यक है। बहरहाल, गौरतलब है कि यूगांडा ने निर्गुट सम्मेलन के तुरंत बाद विकासशील देशों के अन्य समूह ग्रुप-77 की चीन के साथ बैठक आयोजित की। हालांकि नाम ग्रुप-77 है, लेकिन इसमें 135 देश शामिल हैं। इसे संयुक्त राष्ट्र में विकासशील देशों के बीच तालमेल के लिए बनाया गया था।