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दक्षिण अफ्रीका में बदलाव

एएनसी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीतिक यात्राओं में काफी समानता है। क्या एएनसी नई चुनौतियों से उबरने में कामयाब होगी? या धीरे-धीरे दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में उसकी स्थिति वैसी ही हो जाएगी, जैसी भारत में इंडियन नेशनल कांग्रेस की हुई?

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन खत्म होने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब सत्ताधारी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एनएसी) के पास बहुमत नहीं होगा। अब उसे अपना राष्ट्रपति चुनवाने के लिए किसी सहयोगी दल की जरूरत पड़ेगी। (दक्षिण अफ्रीका में कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति के हाथ में होती है, जिनका चुनाव संसद करती है।) रंगभेद की समाप्ति के बाद दक्षिण अफ्रीका में पहली बार 1994 में चुनाव हुए थे। 30 साल बाद एनएसी को पार्टी में फूट, लोगों की बढ़ी मुश्किलों, और भ्रष्टाचार की गंभीर की शिकायतों के कारण बहुमत गंवाना पड़ा है। पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए थे। इस कारण एएनसी का नेतृत्व उनकी हाथ से निकल गया। तब उन्होंने अपनी पार्टी बना ली, जिसे जुलु कबीले के वर्चस्व वाले क्वाजुलु नटाल प्रांत में जोरदार सफलता मिली है। राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें 11 फीसदी वोट मिले हैं। उधर नई उभरी वामपंथी पार्टी- इकॉनमिक फ्रीडम फाइटर्स (ईएफएफ) ने 8 प्रतिशत वोट हासिल कर प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। इन दोनों पार्टियों के कारण एएनसी को 15 प्रतिशत से अधिक वोट गंवाने पड़े। इस बार वह लगभग 42 फीसदी वोट ही पा सकी।

इसलिए अब अगर वर्तमान राष्ट्रपति साइरिल रामफोसा को फिर राष्ट्रपति बनना है, तो उन्हें ईएफएफ या जुमा की पार्टी के साथ गठबंधन करना होगा। दोनों पार्टियों की अपनी-अपनी मांगें हैं। रामफोसा पहले ट्रेड यूनियन नेता थे, लेकिन बाद में व्यापारी बन गए। उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार की शिकायतें गहराई हैं। इस कारण भी उनकी स्थिति कमजोर हुई है। दरअसल, एएनसी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीतिक यात्राओं में काफी समानता है। दोनों ने अपने-अपने देशों में मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया। सफलता मिलने के बाद उन्होंने आरंभिक राष्ट्र-निर्माण किया। इससे मिली लोकप्रियता के आधार पर दोनों ने 30 साल तक बिना किसी चुनौती के राज किया। मगर तीन दशक के बाद उन्हें नई राजनीतिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। अब देखने की बात यह होगी कि एएनसी सामने आई चुनौतियों का हल निकालने में कामयाब होती है, या धीरे-धीरे उसकी स्थिति दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में वैसी ही हो जाती है, जैसी भारत में इंडियन नेशनल कांग्रेस की हुई।

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