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नीतिन गडकरी की साफगोई

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रेवड़ियां दूसरी सब्सिडियों के भुगतान में रुकावट की शर्त पर ही बांटी जा सकती हैं। बल्कि कहा यह जाएगा कि इन पर अमल समाज की जड़ों को मजबूत करने वाली और मानव विकास का आधार बनने वाली योजनाओं की कीमत पर ही होता है।

भाजपा की अंदरूनी सियासी समीकरण वाले एंगल में सिर खपाने से बच सकें, तो केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने जो कहा है, उसकी अहमियत बेहतर ढंग से समझ आ सकती है। गडकरी ने महाराष्ट्र में अपनी ही पार्टी की गठबंधन सरकार की नई घोषित लड़की बहिन योजना पर सवाल उठाए हैं। यह सच बयान किया है कि इस योजना पर अमल दूसरी सब्सिडी में कटौती की शर्त पर ही संभव है। इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर सभी महिलाओं को 1,500 रुपये हर महीने दिए जाएंगे। इसका लाभ ढाई करोड़ महिलाओं को मिलेगा। इससे राज्य के खजाने पर 46 हजार करोड़ रुपये का नया सालाना बोझ आएगा। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद एकनाथ शिंदे सरकार ने कुछ ऐसी नई घोषणाएं कीं, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में रेवड़ी कहा जाएगा। शिंदे ने आर्थिक रूप से कमजोर हर परिवार को हर साल तीन गैस सिलिंडर मुफ्त देने, किसानों को प्रति पांच हेक्टयर जमीन पर पांच हजार रुपये बोनस देने, और उनके बिजली बिल माफ करने की घोषणा भी की है। इन सबका अतिरिक्त बोझ खजाने पर आएगा।

गडकरी की टिप्पणी गौरतलब है कि ऐसी योजनाओं पर अमल दूसरी सब्सिडियों के भुगतान में रुकावट की शर्त पर ही संभव है। बल्कि कहा यह जाएगा कि इन पर अमल समाज की जड़ों को मजबूत करने वाली और मानव विकास का आधार बनने वाली योजनाओं की कीमत पर ही होता है। मगर इस नव-उदारवादी दौर में जन-कल्याण का मतलब ऐसी योजनाओं का बढ़-चढ़ कर एलान हो गया है, जिस होड़ सभी पार्टियां शामिल हो चुकी हैं। सीधे और सरल शब्दों में इसे ‘वोट खरीदने की होड़’ कहा जा सकता है। इस चलन का विरोध धारा के खिलाफ बोलना माना जाता है, जिसका साहस राजनेता नहीं दिखा पाते। महाराष्ट्र में चुनावी सरगर्मियां शुरू हो चुकी हैं और उसके बीच गडकरी का यह साहस दिखाना प्रशंसनीय है। ऐसी बातों से यह रुझान थमेगा तो नहीं- फिर भी लोगों को सच बताने का अपना महत्त्व है। यह बात अवश्य बताई जानी चाहिए बांटी जा रही रेवड़ियां समाज के दीर्घकालिक विकास की कीमत पर हैं।

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