ऐसा पहली बार हुआ कि नीट-यूजी परीक्षा में बैठे 67 छात्रों ने पूरे अंक पा कर पहली रैंक हासिल की। ऑल इंडिया स्तर पर प्रथम रैंक अब तक एक या दो छात्रों को ही मिलती रही है। इसलिए संदेह गहरा गया है।
यह संदेह गहराता जा रहा है कि प्रतियोगी परीक्षाएं धांधली का जरिया बन गई हैं और यह सब कुछ प्रशासन के संरक्षण में हो रहा है। अनेक राज्यों में पेपर लीक की बढ़ती घटनाओं से यह शक बनना शुरू हुआ। अब देश के टॉप मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए आयोजित नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट-यूजी) को लेकर खड़े हुए विवाद से यह और गहरा गया है। परीक्षा आयोजित कराने वाली राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) सवालों के घेरे में है। शक को इससे भी बल मिला कि जिस रोज लोकसभा चुनाव की मतगणना में सारे देश का ध्यान था, एनटीए ने उसी रोज इम्तहान के नतीजों को जारी करने का फैसला किया। ऐसा पहली बार हुआ कि इस परीक्षा में बैठे 67 छात्रों ने पूरे अंक पा कर पहली रैंक हासिल की। ऑल इंडिया स्तर पर प्रथम रैंक अब तक एक या दो छात्रों को ही मिलती रही है।
एनटीए ने सफाई दी है कि आसान परीक्षा, रजिस्ट्रेशन में बढ़ोतरी, दो सही उत्तरों वाला एक प्रश्न और परीक्षा के समय में नुकसान की भरपाई के लिए ग्रेस मार्क्स दिया जाना ऐसे कारण हैं, जिनसे छात्रों को उच्च अंक लाने में सहायता मिली। मगर परीक्षा में शामिल हुए छात्रों के एक बड़े हिस्से को यह स्पष्टीकरण मंजूर नहीं है। वे परीक्षा रद्द कर इसे दोबारा कराने की मांग कर रहे हैं। एनटीए का कहना है कि 1,500 से ज्यादा उम्मीदवारों को दिए गए ग्रेस मार्क की समीक्षा करने के लिए चार सदस्यों की कमेटी गठित की गई है, जो एक हफ्ते के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। मगर संदेह इतना गहरा है कि ऐसे स्पष्टीकरण से छात्रों एवं समाज के एक बड़े हिस्से को संतुष्ट करने में सफलता नहीं मिली है। आरोप है कि पेपर लीक किया गया। यह मुद्दा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से संबंधित जूनियर डॉक्टर्स नेटवर्क ने उठाया। उसने मामले की सीबीआई जांच और दोबारा परीक्षा कराने को कहा है। जो हालात हैं, उनके बीच इन मांगों को ठुकराना मुश्किल मालूम पड़ता है। अगर ऐसा कर भी दिया गया, तो यह परीक्षा की शुचिता पर संदेह जारी रखने की कीमत पर ही होगा।