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बाघ भी शिकार बने

तथ्य यह है कि बाघों की अवैध हत्या हुई और बाघ संरक्षण विभाग उसे रोकने में नाकाम रहा। ना सिर्फ विफल रहा, बल्कि कई मामलों में तो सघन जांच से ऐसे मामलों की तह तक पहुंचने की भी उसने कोशिश नहीं की।

हेडलाइन मैनेजमेंट और अवधारणा प्रबंधन के इस दौर का शिकार भारत के बाघ भी बने हैं। आम धारणा है कि गुजरे दशक में बाघ संरक्षण के लिए प्रभावशाली कार्य हुए हैं, जिसके परिणाम बाघों की बढ़ी संख्या के रूप में देखने को मिला है। लेकिन अब एक विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट से कुछ अलग ही कहानी सामने आई है। रिपोर्ट बताती है कि बाघों की अवैध हत्या की अपर्याप्त जांच, पोस्टमॉर्टम संबंधी खामियों और इलाज में उपेक्षा के कारण बाघों का मरना जारी है। एसआईटी का गठन 2021-23 के बीच मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और शहडोल वन अंचल में 43 बाघों की मौत की जांच के लिए हुआ था। एसआईटी ने बीते मई और जुलाई में संबंधित अधिकारियों को अपनी रिपोर्ट सौंपी। अब रिपोर्ट के निष्कर्षों की जानकारी मीडिया में लीक हुई है। इसके मुताबिक कम से कम दस बाघों की मौत के मामले में पर्याप्त पड़ताल नहीं हुई। यहां तक कि अधिकारियों ने उन बाघों के लापता अंगों को ढूंढने में भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई।

कुछ मामलों में बाघ बिजली का करंट लगने की वजह से मर गए। 17 मामलों में सामने आया कि अधिकारियों ने मृत्यु का कारण बाघों की आपसी लड़ाई को बता कर असली वजह तक पहुंचने की कोशिश नहीं की। प्रमुख वन संरक्षक और फॉरेस्ट फोर्स के प्रमुख ने स्वीकार किया है कि इस रिपोर्ट से बाघ संरक्षण संबंधी कई खामियां उजागर हुई हैं, हालांकि उनका दावा है कि बाघों को मारने वाले किसी संगठित गिरोह के सक्रिय होने के संकेत नहीं मिले हैं। मगर तथ्य यह है कि बाघों की अवैध हत्या हुई और बाघ संरक्षण विभाग उसे रोकने में नाकाम रहा। ना सिर्फ विफल रहा, बल्कि कई मामलों में तो सघन जांच से ऐसे मामलों की तह तक पहुंचने की भी उसने कोशिश नहीं की है। इस हाल में इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि हत्या संगठित गिरोह कर रहा हो या अलग-अलग अपराधी। अब जबकि एसआईटी ने बाघ संरक्षण संबंधी खामियां बता दी हैं, तो बेहतर होगा कि बहाने बनाने के बजाय अधिकारी उन खामियों को दूर करने पर ध्यान दें।

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