Modi Meets Xi Jinping: यह जरूर एक ठोस सहमति है कि सीमा विवाद पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी जल्द ही मिलेंगे। लेकिन भारत- चीन के रिश्ते में गर्मजोशी आना अभी दूर की बात है।
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PM मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात
रूस के शहर कजान में ब्रिक्स प्लस शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मिले। पांच साल बाद दोनों की यह पहली औपचारिक मुलाकात थी। दोनों में वार्ता हुई और दोनों ने सार्वजनिक रूप से हाथ मिलाया, इसका चाहे जितना प्रतीकात्मक महत्त्व हो, लेकिन सार-तत्व के लिहाज से इस वार्ता में कुछ ठोस हासिल नहीं हुआ। जहां तक प्रतीकात्मकता की बात है, उसके दो पहलू हैं। एक दोनों देशों के आपसी रिश्तों का है। इस लिहाज से इस मुलाकात से आपसी संबंधों में स्थिरता की संभावना मजबूत हुई है। दूसरा पहलू ब्रिक्स के बड़े मंच का है, जिसके लिए भारत- चीन के संबंधों में टकराव से वह संदेश प्रेषित करना कठिन बना हुआ था, जो वह पश्चिम को देना चाहता है।
मोदी और शी का मिलना महत्त्वपूर्ण घटना
पैगाम यह है, जैसाकि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि पांच सौ वर्षों से विश्व पर पश्चिम के रहे वर्चस्व को अब ग्लोबल साउथ के देश स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इस नजरिए से मोदी और शी का मिलना महत्त्वपूर्ण घटना है। यह संयोग भर नहीं है कि ब्रिक्स समर्थकों की तरफ से उस तस्वीर को सोशल मीडिया पर खूब साझा किया गया, जिसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन एक हाथ से मोदी और दूसरे हाथ से शी के हाथ पकड़े हुए हैं। बहरहाल, जहां तक भारत-चीन संबंध की बात है, तो दोनों नेता तीन दिन पहले दोनों देशों के बीच सीमा पर पेट्रोलिंग के लिए घोषित हुए करार की पुष्टि भर कर पाए।
मोदी ने कहा “सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। पारस्परिक विश्वास, पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक संवेदनशीलता हमारे संबंधों का आधार बने रहना चाहिए।” उधर शी ने सरहद पर शांति एवं स्थिरता पर जोर दिया। एक ठोस सहमति यह जरूर बनी कि सीमा विवाद हल के व्यापक प्रश्न को आगे ले जाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी जल्दी मिलेंगे। इस नजरिए से यह जरूर संतोषजनक है कि आखिर दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ पिघली है। लेकिन रिश्तों में गर्मजोशी शायद अभी दूर की बात है।