किसान आंदोलन के प्रभाव वाले इलाकों में आम चुनाव में भाजपा को तगड़े झटके लगे। संभवतः उसके मतलब को सरकार ने समझा है। मगर प्रश्न यही है कि वह सचमुच दिशा परिवर्तन के लिए तैयार है, या सिर्फ धारणा निर्माण करना चाहती है?
केंद्र में तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों के लिए रकम जारी करते हुए अपना पहला कदम उठाया। अब सरकार ने खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में इजाफे का एलान किया है, जो ऊपरी तौर पर ठोस बढ़ोतरी दिखती है। सरकार ने दावा किया है कि वह किसानों को उनकी लागत से डेढ़ गुना एमएसपी देने के अपने वादे को पूरा करने के लिए कृत-संकल्प है। ताजा बढ़ोतरी के तहत मोटे अनाजों के एमएसपी की सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। इन अनाजों की खपत को प्रोत्साहित करना मोदी सरकार की घोषित नीति है। मगर देश में आज भी लोगों के भोजन में सबसे ज्यादा मात्रा गेहूं और चावल की ही रहती है। इसलिए खरीफ फसलों में धान के एमएसपी पर सबसे ज्यादा ध्यान रहता है। इस बार धान के विभिन्न प्रकारों पर हुई औसत वृद्धि तकरीबन साढ़े पांच प्रतिशत है। मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए विचार करें, तो यह बढ़ोतरी बहुत प्रभावशाली मालूम नहीं पड़ती।
खाद्य मुद्रास्फीति पर गौर करें, जो औसतन आठ प्रतिशत से ऊपर है, तो एमएसपी में ताजा बढ़ोतरी को और भी मामूली कहा जाएगा। जहां तक लागत से डेढ़ गुना ज्यादा एमएसपी देने की बात है, तो इस बारे में सरकार के दावे को किसान संगठन पहले ही नकार चुके हैं। उन्होंने ध्यान दिलाया है कि इस बारे में सरकार का फॉर्मूला वह नहीं है, जिसकी सिफारिश एमएस स्वामीनाथन आयोग ने की थी। आयोग ने खेतों के किराया शुल्क को भी लागत में गिनने का सुझाव दिया था। बहरहाल, मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में जो सांकेतिक नजरिया दिखाया है, उससे लगता है, उसने 2024 के आम चुनाव के जनादेश के कम-से-कम एक संदेश को ग्रहण किया है। किसान आंदोलन के प्रभाव वाले इलाकों में सत्ताधारी भाजपा को जो तगड़े झटके लगे, उसके मतलब को सरकार ने समझा है। इसलिए वह अब किसानों को मजबूत संदेश देना चाहती है। मगर प्रश्न यही है कि वह सचमुच दिशा परिवर्तन के लिए तैयार है, या महज संकेतों के जरिए धारणा निर्माण करना चाहती है?