कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा बेहद जरूरी है, लेकिन यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि उद्यम रहेंगे, तभी रोजगार के अवसर बने रह पाएंगे। औद्योगिक विवाद असामान्य नहीं हैं, ना ही उनका समाधान संभावना की सीमा से बाहर है।
तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में सैमसैंग कंपनी में कर्मचारियों की महीने भर से चल रही हड़ताल ने कुछ बुनियादी सवाल उठाए हैं, जिनका संबंध मौजूदा अर्थव्यवस्था के कई आयामों से है। इस संयंत्र के 1,300 कर्मचारियों ने नौ सितंबर को हड़ताल शुरू की थी। वे ज्यादा वेतन, बेहतर सुविधाओं, और ट्रेड यूनियन को मान्यता दिए जाने की मांग कर रहे हैं। इनमें वेतन की मांग सबसे ज्यादा बहस के केंद्र में आई है। यूनियन का कहना है कि श्रीपेरंबुदूर संयंत्र के कर्मचारियों को औसतन 25 से 30 हजार रुपये वेतन मिलता है, जबकि इसी कंपनी के सिओल स्थित कारखाने में औसतन सवा पांच लाख रुपए (भारतीय मुद्रा में) तनख्वाह मिलती है। यह तर्क गले नहीं उतरता। दक्षिण कोरिया में जीवन स्तर की लागत भारत से कई गुना ज्यादा है। ऐसे में यह तुलना उचित नहीं लगती।
वैसे भी भारत में केंद्र और राज्यों की सरकारें निवेश के लिए विदेश कंपनियों को लुभाने की होड़ में जुटी हैं। इसमें भारत की जो विशेषता वे प्रचारित करती हैं, वह मजदूरी की सस्ती दर ही है। बहरहाल, यह तथ्य जरूर अहम है कि कोरोना काल के बाद बढ़ी महंगाई ने भारतीय रुपये की क्रय शक्ति घटा दी है, चूंकि जिसके अनुपात में आम तौर पर तनख्वाह नहीं बढ़ी है। इसलिए वेतन वृद्धि की मांग अपनी जगह सही लगती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए दोनों पक्ष तार्किक नजरिया अपनाएं, तो समाधान असंभव नहीं है। अब राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी पहल की है। उन्होंने अपने दो मंत्रियों को मध्यस्थता की जिम्मेदारी सौंपी है।
आशा है, ये दोनों मंत्री प्रबंधऩ और यूनियन दोनों के बीच सहमति बनाने में सफल होंगे। कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा बेहद जरूरी है, लेकिन यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि उद्यम रहेंगे, तभी रोजगार के अवसर बने रह पाएंगे। औद्योगिक विवाद असामान्य नहीं हैं, ना ही उनका समाधान संभावना की सीमा से बाहर है। इस हड़ताल ने वैश्विक स्तर पर प्रचार पाया है, जिस दौरान भारत में निवेश की संभावनाओं को लेकर नए सवाल खड़े किए गए हैँ। इसलिए इस हड़ताल की जल्द समाप्ति सबके हित में है।