लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी हार नहीं हुई। मगर अनेक लोगों की राय में उसे राजनीतिक पराजय कहा जाएगा। यह राजनीतिक व्याख्या का विषय है। इन्हें तकनीकी नजरिए से देखना विमर्श को संकुचित करना है। मेटा इसमें सहायक बनी है।
फेसबुक, इंस्टाग्राम, ह्वाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स की मालिक कंपनी मेटा ने अपने सीईओ के एक साधारण-से बयान पर भारत सरकार से माफी मांग ली है। सीईओ मार्क जकरबर्ग ने एक चर्चा में कहा कि कोरोना काल के बाद जिन देशों में चुनाव हुए, ज्यादातर मामलों वहां के सत्ताधारी दल हार गए। इसी सिलसिले में उन्होंने भारत का भी नाम ले लिया। इस पर भारत की सत्ताधारी पार्टी आक्रोश में आ गई। पहले केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रतिवाद किया।
वैसे तो बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए थी, मगर उसके बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने जकरबर्ग को विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी भेज दिया। उन्होंने कहा कि जकरबर्ग को माफी मांगनी होगी। तो मेटा की भारतीय इकाई ने उनकी इच्छा पूरी कर दी है। मगर मुद्दा यह है कि ऐसी टिप्पणियों पर भारत की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी इतनी संवेदनशील क्यों है? तथ्य यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 303 से घट कर 240 पर आ गईं। उसके नेतृत्व वाले एनडीए की सीटें साढ़े तीन सौ से घट कर 293 पर आ गईं। इस रूप में उसकी चुनावी हार तो नहीं हुई, मगर अनेक लोगों की राय में इसे राजनीतिक पराजय कहा जाएगा। किसी पार्टी या गठबंधन के 60 से ज्यादा सीटों के नुकसान का यह अर्थ अवश्य ही होता है कि उसने बड़ी संख्या में मतदाताओं का समर्थन गंवाया।
ऐसे तथ्य राजनीतिक व्याख्या का विषय होते हैँ। इन्हें तकनीकी नजरिए से देखना विमर्श एवं विश्लेषण के दायरे को संकुचित करने का प्रयास माना जाएगा। वैसे इस प्रकरण से मेटा या ऐसी सोशल मीडिया कंपनियों की भूमिका एवं चरित्र भी बेनकाब होते हैं। ये कंपनियां हर देश में शासक के मुताबिक नीति तय करती हैं, यह बात पहले से जाहिर है। 2020 में डॉनल्ड ट्रंप की हार के साथ उन्हें अपने प्लैटफॉर्म्स पर प्रतिबंधित करने वाली मेटा अब खुद को उनके एजेंडे में पूरी तरह ढालती दिख रही है। उसी क्रम में ताजा माफी भी अब जुड़ गई है। ऐसी कंपनियों के प्लैटफॉर्म्स सहारे अभिव्यक्ति की आजादी बचाने की उम्मीद कितना भ्रामक है, यह इससे जाहिर हुआ है।