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सबकी जान जोखिम में

आयुष को बढ़ावा देने की वर्तमान सरकार की मुहिम असल में निजी अस्पतालों के लिए अपना मुनाफा बढ़ाने का उपाय बन गई है। बताया जाता है कि आयुष चिकित्सक एलोपैथ डॉक्टरों की तुलना में आधी से भी कम सैलरी में मिल जाते हैँ।

यह सूचना सिरे से चौंकाती है कि दिल्ली के जिस शिशु अस्पताल में रविवार को अग्निकांड हुआ, वहां हादसे के वक्त आईसीयू में आयुर्वेद में डिग्रीधारी डॉक्टर तैनात था। उसके बाद एक अखबार ने अपनी एक खास स्टोरी में बताया है कि अब प्राइवेट अस्पतालों में आयुर्वेद, होमियोपैथ और अन्य पारंपरिक चिकित्सा में डिग्रीधारी डॉक्टरों की धड़ल्ले से भर्ती हो रही है। इनमें कई वैसे अस्पताल भी शामिल हैं, जिन्हें पांच सितारा कहा जाता है। बात नियुक्ति तक ही रहती, तो उसमें आपत्ति की कोई बात नहीं थी। लेकिन ऐसे डॉक्टरों को खासकर रात में आईसीयू और अन्य महत्त्वपूर्ण ड्यूटी पर तैनात किया जाता है। आईसीयू आपातकालीन इलाज की यूनिट है। वहां जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे मरीजों को रखा जाता है। यह दावा आयुष चिकित्सा के समर्थक भी शायद नहीं करेंगे कि उन विधियों में आपातकालीन जीवन रक्षा की कारगर विधियां हैं। बहरहाल, सबसे अधिक आपत्तिजनक यह है कि इस बारे में मरीज और उनके परिजनों को भरोसे में नहीं लिया जाता। संबंधित अखबार ने जब बहुत से ऐसे लोगों से बात की, तो वे भी यह जानकार भौंचक रह गए।

जानकारों के मुताबिक निजी अस्पताल आयुष डॉक्टरों की बड़े पैमाने पर भर्ती कॉस्ट कटिंग के मकसद से करते हैँ। स्पष्टतः खर्च घटाने के हर प्रयास के पीछे उद्देश्य मुनाफा बढ़ाना होता है। इस तरह आयुष चिकित्सा को बढ़ावा देने की वर्तमान सरकार की मुहिम असल में निजी अस्पतालों के लिए अपना मुनाफा बढ़ाने का उपाय बन गई है। बताया जाता है कि आयुष चिकित्सक एलोपैथ डॉक्टरों की तुलना में आधी से भी कम सैलरी में मिल जाते हैँ। अब विचारणीय है कि क्या इस तरह देसी और पारंपरिक चिकित्सा को सचमुच प्रोत्साहन मिल रहा है? सामने आई यह जानकारी असल में कई नीतिगत सवाल उठाती हैं। बिना विनियमन और निगरानी की चुस्त व्यवस्था के निजीकरण वास्तव में लोगों की जान से खिलवाड़ की नीति बन गया है। निगरानी कैसी लचर है, यह भी दिल्ली की घटना से सामने आया है, जहां फायर सेफ्टी के नियम पांच साल पहले तय हुए, लेकिन शायद किसी भी अस्पताल में उन पर अमल नहीं हुआ है।

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