ओलिंपिक्स में मेडल जीतना खेल जगत की सबसे बड़ी उपलब्धि होता है। ऐसे में जो खिलाड़ी पदक जीतते हैं, उन्हें स्वाभाविक रूप से खेल रत्न पुरस्कार मिलने चाहिए। इसके लिए एथलीट खुद अर्जी दें, इस नियम को तुरंत बदलने की जरूरत है।
ऐसे नियम अतार्किक हैं, जिनकी वजह से देश का नाम रोशन करने वाली शख्सियतों से उनका सम्मान छिने और वे आहत महसूस करें। वैसे भी सम्मान पाने के लिए खेल प्रतिभाओं के खुद आवेदन करने की शर्त अजीबोगरीब है। इसी शर्त के कारण ओलिंपिक खेलों में अप्रतिम प्रदर्शन करने वाली निशानेबाज मनु भाकर इस वर्ष खेल रत्न पुरस्कार पाने से वंचित हो गई हैं। भाकर का कहना है कि शर्त के मुताबिक उन्होंने पुरस्कार के लिए पोर्टल पर जाकर आवेदन किया था। लेकिन संभवतः किसी तकनीकी गड़बड़ी के कारण उनकी अर्जी अधिकारियों तक नहीं पहुंच पाई। इस तरह जिस साल उन्होंने ओलिंपिक्स में दो पदक जीत कर ऐसा करने वाली पहली भारतीय बनीं, उन्हें इस पुरस्कार से वंचित होना पड़ा है।
Also Read: संसद भवन के सामने आग लगा कर जला युवक
इस पर मनु के असंतोष को आसानी से समझा जा सकता है। उनके पिता ने एक इंटरव्यू में मनु की उदास प्रतिक्रिया की जानकारी दी। उनके पिता ने बताया- ‘उसने मुझसे कहा कि मुझे ओलंपिक्स जाकर देश के लिए पदक जीतने ही नहीं चाहिए थे। असल में मुझे एथलीट ही नहीं बनना चाहिए था।’ जब नाम जारी हुए, तब मनु को पता चला कि इस वर्ष खेल रत्न पुरस्कारों के लिए जिन 12 खिलाड़ियों को शॉर्ट लिस्ट किया गया है, उनमें उनका नाम नहीं है। जबकि 2021 में टोक्यो ओलंपिक्स के बाद वहां पदक जीतने वाले सभी सात खिलाड़ियों को खेल रत्न से सम्मानित किया गया था। ओलिंपिक्स में मेडल जीतना खेल जगत की सबसे बड़ी उपलब्धि होता है।
जहां मुकाबला सचमुच वैश्विक स्तर का हो, वहां कामयाब होना आसान नहीं होता। ऐसे में जो खिलाड़ी पदक जीतते हैं, उन्हें स्वाभाविक रूप से खेल रत्न पुरस्कार के लिए चुना जाना चाहिए। इसके लिए एथलीट खुद अर्जी दें, इस नियम को तुरंत बदले जाने की जरूरत है। मनु भाकर की उपलब्धि कितनी बड़ी है, क्या इसे उन्हें खुद बताना चाहिए? भारत में दिक्कत यह है कि ओलंपिक्स की सफलता देश को सिर्फ एक-दो दिन याद रहती है। ओलंपिक्स जैसे मौकों पर उपलब्धियों के अभाव के लिए देश की यह संस्कृति कम जिम्मेदार नहीं है। बहरहाल, अब सूरत बदले जाने की जरूरत है।