मणिपुर में हालात ऐसे बन गए हैं कि वहां की पुलिस कथित तौर पर सिर्फ मैतई समुदाय के संरक्षक बल के रूप में काम कर रही है। ऐसे में उसकी निगाह में अर्धसैनिक दस्तों का अल्पसंख्यक कुकी समुदाय के लोगों को संरक्षण देना अपराध बन गया है।
मणिपुर में अशांति की शुरुआत हुए तीन महीना गुजर गए हैं, लेकिन आज भी हर रोज आने वाली खबर वहां लगातार बिगड़ रहे हालात का संकेत दे रहे हैं। अब तक बात दो समुदायों के बीच हो रही हिंसा की थी। लेकिन अब झगड़ा राज्य पुलिस और एक अर्ध सैनिक बल के बीच तक पहुंच गया है। पहले एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें मणिपुर पुलिस और असम राइफल्स के जवान आपस में तू तू-मैं मैं करते देखे गए। फिर खबर आई कि असम सरकार ने चूराचांदपुर और विष्णुपुर के बीच मौजूद एक चौकी से असम राइफल्स की टुकड़ी को हटने का आदेश दिया। अब खबर आई है कि मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दिया है। इसमें असम राइफल्स पर कुकी चरमपंथियों को भागने का मौका देने और उन्हें संरक्षण देने का इल्जाम लगाया गया है। यहां इस बात को रेखांकित करने की जरूरत है कि असम राइफल्स की कमान भारतीय सेना के पास है।
क्या बात किसी आम कल्पना में समा सकती है कि भारतीय सेना उग्रवादियों की मदद कर रही है? लेकिन मणिपुर में हालात ऐसे बन गए हैं कि वहां पुलिस कथित तौर पर सिर्फ मैतई समुदाय के संरक्षक बल के रूप में काम कर रही है। ऐसे में उसकी निगाह में संभवतः अर्धसैनिक दस्तों का अल्पसंख्यक कुकी समुदाय के लोगों को संरक्षण देना अपराध बन गया है। यह बहुत खतरनाक स्थिति है। इस पर तुरंत नियंत्रण कायम नहीं किया गया, तो स्थितियां हमारी आशंकाओं से भी ज्यादा बिगड़ सकती हैं। यह अच्छी बात है कि लोकसभा में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव से देश का ध्यान मणिपुर के हालात पर टिका है। विपक्षी नेताओं ने वहां की स्थितियों का विस्तार वर्णन कर देश को इस बारे में आगाह किया है। अब अपेक्षित है कि जब प्रधानमंत्री जब जवाब दें, तो वे इस दौरान उठे गंभीर प्रश्नों के ठोस उत्तर प्रस्तुत करें। उससे मणिपुर में स्थितियों को बेहतर करने में मदद मिलेगी और सारे देश में भरोसा पैदा होगा। लेकिन अगर प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया, तो फिर अविश्वास का माहौल और गहरा जाएगा।