मणिपुर में हिंसा की शुरुआत हुए लगभग नौ महीने आने को हैं, लेकिन स्थिति आज भी नियंत्रण में नहीं है। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच अविश्वास और विभाजन की रेखाएं गहरा गई हैं और उनके कुछ संगठन अब आतंकवादी तौर-तरीकों का सहारा लेने लगे हैं।
संभवतः मणिपुर में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को भी हकीकत का अहसास हुआ है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की प्राथमिकताएं चाहे जो हों, प्रदेश के नेता समझ रहे हैं कि मौजूदा सरकार आम जन के बीच अपना भरोसा खो चुकी है और उसके हाथ में समाधान का कोई सूत्र नहीं है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को भी इस आम भावना को स्वीकार करना पड़ा है। तभी रविवार को उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुलाई और उसके बाद एलान किया कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय मांगेंगे। चर्चा है कि उस मुलाकात में बीरेन सिंह अपने इस्तीफे की पेशकश करेंगे। उनका यह कथन महत्त्वपूर्ण हैः ‘हमने कोई फैसला नहीं किया है, क्योंकि हम यह तय नहीं कर पाए हैं कि प्रशासन की जिम्मेदारी हमें किसके हाथ में सौंपनी चाहिए। लोगों को लंबे समय तक बहुत भुगतना पड़ा है और उनके हालात की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।’ मणिपुर में हिंसा की शुरुआत हुए लगभग नौ महीने आने को हैं, लेकिन स्थिति आज भी नियंत्रण में नहीं है। जब-तब हिंसा और मौतों की खबर वहां से आती रहती है।
राज्य के दो प्रमुख समुदायों- मैतेई और कुकी के बीच अविश्वास और विभाजन की रेखाएं गहरा गई हैं और उनके कुछ संगठन अब आतंकवादी तौर-तरीकों का सहारा लेने लगे हैं। यह बहुत आरंभ में स्पष्ट हो गया था कि बीरेन सिंह सबको साथ लेकर चलने में नाकाम हो गए हैं और तब से उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है। एक बार उन्होंने इस्तीफा देने का दिखावा भी किया, जब उनके समर्थकों ने महिलाओं की भीड़ जुटाकर उनका इस्तीफा फाड़ दिया था। तब यह संदेश दिया गया कि बहुसंख्यक मैतई समुदाय मजबूती से बीरेन सिंह के पीछे खड़ा है। लेकिन हिंसा जारी रहने और उससे सभी समुदायों को भारी नुकसान होने के बाद लगता है कि मैतई आबादी के बीच उनके प्रति भरोसा डिग गया है। तो अब मख्यमंत्री ने एलान किया है कि ‘यह राजनीति करने का समय नहीं है और सभी दल आगे का रास्ता ढूंढने के लिए एकजुट हो गए हैं।’ देर से ही सही, लेकिन यह अच्छा संकेत है।