मणिपुर के उग्रवादियों के पास रॉकेट लॉन्चर और बम गिराने में सक्षम ड्रोन कहां से आ रहे हैं, यह सवाल देश को परेशान कर रहा है। फिर मणिपुर में बनते हालात को सिर्फ वहीं तक समेट कर देखना सही नजरिया नहीं होगा।
मणिपुर में हिंसा का नया रूप देखने को मिल रहा है। लगातार तीन दिन ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने चौंकाया। हैरत में डालने वाली पहली खबर यह आई कि उग्रवादियों ने पहाड़ से तराई के इलाके में ड्रोन्स का इस्तेमाल कर बम गिराए हैं। फिर एक पूर्व मुख्यमंत्री के आवास पर रॉकेट दागे गए, जिसमें एक व्यक्ति की जान गई। शनिवार को मैतेई और कूकी समुदाय के उग्रवादियों के बीच जोरदार गोलीबारी हुई, जिसमें आधा दर्जन जानें गईं। जब यह हो रहा है, सुरक्षा बल हतप्रभ इसे देख रहे हैं। कई बार ऐसा लगता है कि राज्य में उनकी कोई उपस्थिति ही नहीं है। हिंसा की शुरुआत हुए 16 महीनों से ज्यादा का समय गुजर चुका है। मगर हालात काबू में लाने के लिए प्रशासन के स्तर पर जिस पहल की अपेक्षा थी, वह सिरे से गायब है। केंद्र एन. बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाए रखने पर अड़ा रहा है, जबकि सिंह की कोई साख राज्य में बची है, इसे अब वे भी नहीं मानते होंगे! बीरेन सिंह पर आरंभ में ही यह इल्जाम लगा कि वे पूरे राज्य का नेता होने की भूमिका निभाने के बजाय एक समुदाय विशेष के नेता के रूप में काम कर रहे हैं।
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी उस समुदाय में अपना आधार नहीं खोना चाहती, संभवतः यही कारण है कि उसने बीरेन सिंह पर अपना दांव लगाए रखा है। हालांकि उसकी यह रणनीति भी लोकसभा चुनाव में विफल रही, जब राज्य की दोनों सीटें भाजपा ने गवां दी। उसके बाद यह समझना कठिन रहा है कि केंद्र की मणिपुर को लेकर समझ क्या है। इस बीच इस भ्रम की बहुत भारी कीमत मणिपुर के दोनों संघर्षरत समुदायों के लोगों को चुकानी पड़ रही है। वहां के उग्रवादियों के पास रॉकेट लॉन्चर और बम गिराने में सक्षम ड्रोन जैसे आधुनिक हथियार कहां से आ रहे हैं, यह सवाल इस समय देश को परेशान कर रहा है। मणिपुर में बनते हालात को सिर्फ वहीं तक समेट कर देखना सही नजरिया नहीं होगा। वहां की घटनाएं पूरे नॉर्थ-ईस्ट को प्रभावित कर सकती हैं, जहां हिंसा और अशांति का लंबा इतिहास रहा है।