भारत में चुनावी रेवड़ी बांटने की फैलती जा रही आत्मघाती राजनीतिक संस्कृति पर अर्थपूर्ण चर्चा के एक मौके को गंवा दिया गया है। इस संस्कृति के कारण देश की जड़ें कमजोर हो रही हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि सभी दल इस होड़ में शामिल हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी की महाराष्ट्र शाखा को सलाह दी कि विधानसभा चुनाव में वह ऐसे वादे ना करे, जिन्हें बाद में वित्तीय सीमा के कारण लागू करना कठिन हो। इसके पहले कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार का बयान चर्चित हुआ था, जिससे संकेत मिला कि राज्य सरकार अपनी शक्ति योजना पर पुनर्विचार कर रही है। विवाद बढ़ने पर शिवकुमार ने सफाई दी कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस सरकार ने शक्ति योजना लागू की, जिसके तहत महिलाओं और ट्रांसजेंडर्स को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा मिली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन बयानों को कांग्रेस पर हमला बोलने का औजार बनाया। उनके मुताबिक इससे जाहिर हो गया है कि कांग्रेस की चुनावी गारंटियां फर्जी हैं। उन्होंने कहा- ‘चुनाव- दर- चुनाव कांग्रेस लोगों से ऐसे वादे करती है, जिनके बारे में उसे मालूम है कि वह कभी उन्हें पूरा नहीं कर पाएगी। कांग्रेस अब लोगों के सामने बुरी तरह बेनकाब हो गई है।’ इस पर कांग्रेस नेताओं का गुस्सा भड़कना लाजिमी था। सो उन्होंने प्रधानमंत्री की चुनावी गारंटियों का लेखा-जोखा पेश करने की मुहिम छेड़ दी। बहरहाल, खड़गे ने अगर चुनावी वादों के मामले में यथार्थवादी रुख अपनाने की सलाह अपनी पार्टी को दी, तो यह सभी दलों के लिए सार्थक आत्म-निरीक्षण का मौका भी हो सकता था।
प्रधानमंत्री चाहते, तो इस बारे में गंभीर राष्ट्रीय चर्चा की पहल कर सकते थे। सभी दलों के बीच संवाद कर राजकोषीय संभाव्यता के दायरे में चुनावी वादे करने पर सहमति बनाने की पहल वे कर सकते थे। मगर सारा मामला तू तू-मैं मैं का बन गया। इस तरह भारत में फैलती जा रही आत्मघाती राजनीतिक संस्कृति पर किसी अर्थपूर्ण चर्चा के एक मौके को गंवा दिया गया है। सिद्ध तथ्य है कि चुनावों रेवड़ी बांटने की संस्कृति मानव एवं सामान्य विकास के क्षेत्रों में बुनियादी निवेश की कीमत पर हो रहा है। इससे देश की जड़ें कमजोर हो रही हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि सभी दल इस होड़ में शामिल हैं। उन्हें अपनी रेवड़ी को उचित, और दूसरों की अनुचित लगती है।