Maharashtra Jharkhand election: महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम का एलान हो गया है। हकीकत की रोशनी में देखें, तो दोनों राज्यों में मुकाबला बराबरी का है। जमीनी तैयारी और कारगर रणनीति वहां निर्णायक साबित होंगे। इसके बजाय माहौल पर निर्भर रहना आत्मघाती होगा।
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राहुल गांधी ने नेताओं को आगाह किया
एक खबर के मुताबिक राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के कांग्रेस नेताओं को आगाह किया है कि 20 नवंबर को होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर वे जीत के अति आत्म-विश्वास में ना रहें। संभवतः इसी महीने हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी की हुई हार से गांधी ने यह सबक सीखा है। हरियाणा में जिस अति आत्म-विश्वास में पार्टी नज़र आई, आरंभ से ही उसका कोई आधार नहीं था। लोकसभा चुनाव में भाजपा जरूरत ढलान पर नजर आई, फिर भी उसे कांग्रेस दो प्रतिशत ज्यादा यानी 46 फीसदी वोट हासिल हुए थे। सीटें जरूर पांच-पांच दोनों दलों को मिल गई थीं। फिर भी कांग्रेस ने जमीनी तैयारी के बजाय सोशल मीडिया पर अपने समर्थकों के बनाए माहौल पर ज्यादा भरोसा किया। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने जातीय समीकरण एवं चुनाव प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया। नतीजा सामने है।
महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव नतीजों पर गौर करें
महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव नतीजों पर भी गौर करें, तो भाजपा नेतृत्व वाले महायुति को लगभग 44 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी (शरद पवार) के महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के हिस्से में भी लगभग इतने वोट ही आए थे। अघाड़ी ने सीटें जरूर 30 जीत लीं, जबकि महायुति की झोली में 17 सीटें ही आईं। इससे महायुति की बड़ी हार की धारणा बनना लाजिमी था, लेकिन उसी सोच के साथ विधानसभा चुनाव में उतरना आत्मघाती हो सकता है। वैसे भी लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने जातीय समीकरण साधने और ‘रेवड़ी’ बांट कर अपने लिए वोट जुटाने की प्रभावशाली कोशिश की है। (Maharashtra Jharkhand election)
दरअसल, राहुल गांधी को ऐसी ही सलाह झारखंड में अपने गठबंधन सहयोगियों को भी देना चाहिए, जहां 13 और 20 नवंबर को मतदान होगा। वहां हरियाणा जैसी हालत है। भाजपा ने 14 में से आठ सीटें जीतीं, लेकिन 2019 की तुलना में उसकी चार सीटें घटीं। इस कारण उसकी हार की धारणा बनी। जबकि उसके पाले में लगभग 45 फीसदी वोट आए, जबकि इंडिया गठबंधन की झोली में बमुश्किल 39 प्रतिशत वोट गिरे। मतलब यह कि दोनों राज्यों में मुकाबला बराबरी का है। जमीनी तैयारी और कारगर रणनीति वहां निर्णायक साबित होंगे। इसके बजाय माहौल पर निर्भर रहना आत्मघाती साबित होगा।