इस ओर ध्यान खींचा गया है कि आयोग ने सिर्फ प्रतिशत में आंकड़ा बताया है, जबकि 2019 तक वह यह भी बताता था कि हर चुनाव क्षेत्र में कुल कितने मतदाता हैं और उनमें से वास्तव में कितने वोट डाले।
निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रक्रिया को लेकर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। पहले तो उसने प्रथम चरण के मतदान के 11 दिन और दूसरे चरण के पांच दिन बाद तक उन दोनों दौर में हुए मतदान का अंतिम आंकड़ा जारी नहीं किया। नतीजतन, एक अखबार ने अपनी खबर से इस ओर सबका ध्यान खींचा, तब इसे विपक्षी नेताओं ने एक बड़ा मुद्दा बना दिया। सोशल मीडिया पर भी आयोग की मंशा पर सवाल खड़े किए गए। ध्यान दिलाया गया कि 2014 तक मतदान खत्म होने के 24 घंटों के अंदर अंतिम आंकड़ा जारी कर दिया जाता था। विवाद बढ़ता देख मंगलवार शाम को आयोग ने ये आंकड़े जारी किए। लेकिन जानकारों ने तुरंत ध्यान खींचा कि आयोग ने सिर्फ प्रतिशत में आंकड़ा बताया है, जबकि 2019 तक वह यह भी बताता था कि हर चुनाव क्षेत्र में कुल कितने मतदाता हैं और उनमें से वास्तव में कितने वोट डाले।
निर्वाचन आयोग ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उन पर भी प्रश्न उठाए दए हैं। दूसरे चरण का मतदान खत्म होने के बाद लगभग 61 प्रतिशत मतदान होने की सूचना निर्वाचन आयोग ने दी थी। लेकिन अब अंतिम आंकड़ों में इसे 66.71 प्रतिशत बताया गया है। तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने सवाल उठाया है कि क्या इतना अंतर सामान्य है? ये सारा विवाद देश में गहरा रहे अविश्वास के माहौल का संकेत है। मुमकिन है कि देर और आंकड़े देने के तरीके में बदलाव के पीछे कोई दुर्भावना ना हो। मगर यह अवश्य कहा जाएगा कि निर्वाचन आयोग पांच साल पहले की तरह ही सारे आंकड़े शीघ्र एक साथ देकर इस विवाद से बच सकता था। ये बात सचमुच समझ से बाहर है कि अगर पहले 24 घंटों के अंदर अंतिम आंकड़ा बताया जाता था, तो अब 11 दिन क्यों लगे? आयोग अभी भी इस बारे में विश्वसनीय स्पष्टीकरण देकर इस विवाद को खत्म कर सकता है। चुनाव प्रक्रिया पर पहले ही उठ चुके अनेक सवाल माहौल में तैर रहे हैं। इस बात को बार-बार दोहराने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि चुनाव प्रक्रिया को लेकर ऐसा वातावरण पूर्णतः अवांछित है।