सदन में एक तरफ जय हिंदू राष्ट्र, जय श्रीराम, डॉ. हेडगेवार जिंदाबाद जैसे नारे लगे, तो दूसरी तरफ जय संविधान, जय भीम और यहां तक कि जय फिलस्तीन की आवाजें भी बुलंद की गईं। इससे सदन में दिख सकने वाले नज़ारों का अंदाजा लगा है।
संवैधानिक पदों के चुनाव में मुकाबला हो, इसमें कोई अप्रत्याशित या अवांछित बात नहीं है। किसी मंच पर परस्पर टकराने वाली विचारधाराएं मौजूद हों, तो अक्सर ऐसा होता है कि कुछ विचारों की प्रतिनिधि शक्तियां सिर्फ अपनी उपस्थिति या किसी अन्य विचार से असहमति जताने के लिए अपने उम्मीदवार करती हैं। 18वीं लोकसभा में कैसा तीखा मत-विरोध है, यह सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान देखने को मिला। सदन में एक तरफ जय हिंदू राष्ट्र, जय श्रीराम, डॉ. हेडगेवार जिंदाबाद जैसे नारे लगे, तो दूसरी तरफ जय संविधान, जय भीम और यहां तक कि जय फिलस्तीन की आवाजें भी बुलंद की गईं। इससे आने वाले दिनों में सदन में दिख सकने वाले नज़ारों का अंदाजा लगा है। बहरहाल, सदन के स्पीकर को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ, उसकी वजह ये वैचारिक मतभेद नहीं है।
बल्कि विपक्ष ने सत्ताधारी एनडीए के उम्मीदवार ओम बिड़ला के खिलाफ इसलिए प्रत्याशी खड़ा कर दिया, क्योंकि सत्ता पक्ष इंडिया गठबंधन को डिप्टी स्पीकर का पद देने का वादा करने से मुकर गया। जब संसद में कांग्रेस के वर्चस्व में गिरावट आनी शुरू हुई, तब डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष को देने की परंपरा इसलिए कायम की गई थी, ताकि सदन संचालन में विपक्ष भी अपने को भागीदार समझ सके। यह समय की मांग के हिसाब से ढूंढा गया उपाय था। मगर इसके पीछे यह समझ जरूर थी कि विपक्ष भी वैध राजनीतिक शक्ति है, जो एक विशेष भूमिका का निर्वाह करता है। लेकिन मौजूदा दौर में सत्ताधारी भाजपा की काफी ताकत विपक्ष की साख को नष्ट करने में जाती है। वैसे में विपक्ष की वैधता को मान्यता देना उसकी सोच से बाहर है। इस बार के चुनाव के बाद बनी परिस्थितियों में विपक्षी खेमों में यह आशा बनी थी कि कमजोर हुई भाजपा अपना तरीका बदलेगी। लेकिन अब साफ है कि गठबंधन सरकार की बाधाओं या सीमाओं से फिलहाल भाजपा ने पार पा लिया है। नतीजतन, स्पीकर के चुनाव में भी उसने कड़वाहट मोल ली है। साथ ही यह संदेश दिया है कि सत्ता पक्ष के रुख परिवर्तन का अनुमान लगाने वाले लोगों की उम्मीदें रेत पर टिकी हुई हैं।