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अब वैसा भरोसा नहीं!

पश्चिमी मीडिया के मुताबिक अमेरिका की सामरिक रणनीति के तकाजों को पूरा करने की मोदी की क्षमता को लेकर अब वहां भरोसा घटेगा। मतलब, बाजार हो या पश्चिमी राजधानियां- मोदी को वहां उतार पर पहुंच चुके नेता के रूप में देखा जाने लगा है।

लोकसभा चुनाव के नतीजों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रुतबे पर जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, अब वह कई रूपों में जाहिर होने लगा है। मोदी की खास ताकत वित्तीय बाजारों और पश्चिमी राजधानियों में उनकी ऊंची साख रही है। यह साख इस यकीन से बनी कि मोदी संबंधित नीतियों पर प्रभावी अमल कर सकने में सक्षम हैं। आर्थिक वित्तीय नीतियों के निर्माण और उन पर अमल में मोदी ने देशी और विदेशी मार्केट एजेंसियों और विशेषज्ञों की बड़ी भूमिका बना दी। उन्हें सीधे सरकार में भागीदारी दी गई। यह संभवतः ऐसे विशेषज्ञों की सलाह का ही असर था कि मोदी सरकार ना सिर्फ कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए आवंटन घटाती गई, बल्कि प्रधानमंत्री ने जन-कल्याण की धारणा के खिलाफ ही वैचारिक मुहिम छेड़ दी। जिस तरह कम आय और उपभोग क्षमता वाले इलाकों- खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस बार भाजपा का समर्थन आधार घटा है, उससे साफ है कि इस रास्ते पर चलने की कीमत भाजपा को चुकानी पड़ी है। उससे उसके सामने गठबंधन सरकार बनाने की मजबूरी आई है। इससे बाजार की एजेंसियां परेशान हैं। बु

धवार को अमेरिकी रेटिंग एजेंसियों मूडी’ज और फिच ने आशंका जताई कि मोदी के तीसरे कार्यकाल में “दूरगामी सुधारों” पर अमल कठिन हो जाएगा। ऐसा हुआ, तो इसका प्रभाव भारत की आर्थिक वृद्धि संबंधी संभावनाओं पर पड़ेगा। दोनों एजेंसियों ने ध्यान दिलाया कि युवाओं में बेहद ऊंची बेरोजगारी दर और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने पहले से ढांचागत चुनौतियां मौजूद हैं। अब नई बनी राजनीतिक परिस्थितियों के कारण राजकोषीय स्थिति भी कमजोर हो सकती है। नतीजा यह होगा कि रोजकोषीय सेहत के मामले में इंडोनेशिया, फिलीपीन्स और थाईलैंड से जैसी समान आर्थिक हैसियत जैसे देशों की तुलना में भारत कमजोर हाल में बना रहेगा। उधर पश्चिमी मीडिया में ऐसे विश्लेषण आए हैं, जिनके मुताबिक अमेरिका की सामरिक रणनीति के तकाजों को पूरा करने की मोदी की क्षमता को लेकर अब वहां भरोसा घटेगा। कुल निष्कर्ष यह कि बाजार हो या पश्चिमी राजधानियां- मोदी को वहां उतार के दौर में पहुंच चुके नेता के रूप में देखा जाने लगा है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

By NI Editorial

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