एडीआर के मुताबिक भाजपा के नए 240 लोकसभा सदस्यों की औसत संपत्ति 50.04 करोड़ रुपये है। एक बिजनेस अखबार के विश्लेषण से यह सामने आया है कि 54 प्रतिशत लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में सबसे ज्यादा धनवान उम्मीदवार को जीत मिली।
लोकसभा में इस बार कैसे जन प्रतिनिधि पहुंचे हैं, यह गौरतलब है। आखिर व्यक्ति की सोच और प्राथमिकताएं जिस वर्ग और पृष्ठभूमि से वह आता है, अक्सर उससे ही तय होती हैं। अति सुख-सुविधा में पले बढ़े व्यक्ति से यह अपेक्षा निराधार है कि वह वंचित लोगों की पीड़ा को ठीक-ठीक महसूस करेगा- खासकर उस स्थिति में अगर उसका समाज सेवा की कोई पृष्ठभूमि ना रही हो। इसके विपरीत संभावना यह अधिक रहेगी कि वह जिस तबके से आया है, उसकी प्राथमिकताएं उसकी सोच को अधिक प्रभावित करें। गैर-सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिस राइट्स (एडीआर) ने नव-निर्वाचित प्रतिनिधियों का विवरण पेश किया है, जो बतौर उम्मीदवार दायर उन प्रतिनिधियों के हलफनामे पर आधारित है। एडीआर के मुताबिक भाजपा के नए 240 लोकसभा सदस्यों की औसत संपत्ति 50.04 करोड़ रुपये है। ध्यान रहे कि अगले पांच साल तक यही लोग देश के नीति और दिशा तय करेंगे। एक बिजनेस अखबार के विश्लेषण से यह भी सामने आया है कि 54 प्रतिशत लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में सबसे ज्यादा धनवान उम्मीदवार को जीत मिली।
542 (सूरत को छोड़कर, जहां निर्विरोध निर्वाचन हुआ) सीटों में से 501 में विजयी हुए उम्मीदवार करोड़पति हैं। उनमें से 30 ने अपनी संपत्ति 100 करोड़ रुपये से ज्यादा बताई है। एक अन्य चिंताजनक पहलू यह उभरा है कि चुनावों में एक बार फिर से बाहुबल का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। नई लोकसभा में गंभीर आपराधिक आरोप वाले सदस्यों की संख्या पिछली लोकसभा से अधिक होगी। पिछली लोकसभा में कम से कम एक गंभीर आपराधिक आरोप वाले सदस्य 29.7 प्रतिशत और अन्य आपराधिक मुकदमों वाले सदस्य 13.8 फीसदी थे। इस बार ये संख्या क्रमशः 31.2 और 14.9 है। भारतीय संविधान ने हर नागरिक को वोट डालने और निर्वाचित हो सकने का अधिकार दिया है। लेकिन बुनियादी सवाल है कि क्या व्यवहार में सचमुच हर व्यक्ति इस अधिकार का उपभोग कर सकने की स्थिति में है? अगर यह सूरत है, तो क्या ग्रीक दार्शनिक प्लेटो की यह समझ आज भारत में साकार होती नहीं दिख रही है कि लोकतंत्र जल्द ही धनी लोगों के शिकंजे में फंस कर कुलीनतंत्र का रूप ले लेता है?