कहा जाता है कि ना से देर भली। इसलिए विपक्ष में बढ़े तालमेल का स्वागत किया जाएगा। इससे इतनी उम्मीद तो जगी ही है कि विपक्ष समर्थक मतदाता एक उद्देश्य बोध के साथ अब गोलबंद होंगे।
नई दिल्ली में विपक्षी दलों की हुई बड़ी रैली का संदेश यह रहा कि आखिर इंडिया गठबंधन के अंदर उद्देश्य की एकता बनी है। मकसद का इजहार इस नारे में हुआ- अबकी बार, भाजपा तड़ीपार। कहा जा सकता है कि आम चुनाव से ठीक पहले केंद्र ने विपक्ष को अपंग बना देने के लिए जिस आक्रामक अंदाज में सरकारी तंत्र का इस्तेमाल किया है, उसने विपक्ष को एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया है।
विपक्षी दलों की इस शिकायत में दम है कि आम चुनाव में उनसे समान धरातल छीन लिया गया है। चुनाव की निष्पक्षता को इस तरह प्रभावित करने की कोशिश ने भारतीय लोकतंत्र के वजूद को खतरे में डाल दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की इस चेतावनी को भी गंभीरता से लिया जाएगा कि अगर चुनाव की निष्पक्षता को संदिग्ध बनाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की और उसके बाद संविधान को मनमाने ढंग से बदलने की कोशिश की, तो उससे देश में खतरनाक स्थितियां पैदा होंगी।
बहरहाल, अब मुख्य मुद्दा यह है कि क्या विपक्ष अपनी इस समझ को उन मतदाताओं के एक बड़े हिस्से के मन में उतराने में सफल होगा, जो हालिया वर्षों में भाजपा का समर्थन आधार बने रहे हैं? लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर जो शिकायतें विपक्ष ने जताईं, वो एक सिलसिले के रूप में पिछले कई वर्षों में सघन हुई हैं। अगर समय रहते विपक्ष इसको लेकर जनता के बीच में जाता, तो यह वर्तमान चुनाव का एक निर्णायक मुद्दा साबित हो सकता था।
साथ ही आवश्यकता इस बात की थी कि विपक्ष बतौर एक गठबंधन अपना सकारात्मक कार्यक्रम मतदाताओं के सामने रखता। मगर इन बिंदुओं पर उसने पहल अपने हाथ से निकल जाने दी है। इसलिए आज के एक वास्तविक मुद्दे पर बनी एकजुटता के बावजूद यह भरोसा फिलहाल कमजोर है कि इससे विपक्ष मतदाताओं की पसंद पर कोई बड़ा परिवर्तनकारी प्रभाव डाल पाएगा। वैसे कहा जाता है कि ना से देर भली। इसलिए विपक्ष में बढ़े तालमेल का स्वागत किया जाएगा। इससे इतनी उम्मीद तो जगी ही है कि विपक्ष समर्थक मतदाता एक उद्देश्य बोध के साथ अब गोलबंद होंगे।