अगर आज सत्ता का स्रोत लोगों का वोट नहीं, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें हैं, तो आम चुनाव तो एक बार फिर उन्हीं मशीनों से होने जा रहा है। फिर विपक्ष के लिए उम्मीद कहां बचती है?
कांग्रेस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा की समाप्ति को इंडिया गठबंधन में शामिल तमाम दलों के नेताओं की जुटान का मौका बनाया। मुंबई की इस रैली में जुटे विपक्षी नेताओं ने संदेश दिया कि मौजूदा (चुनावी) संघर्ष में वे एकजुट हैं। लड़ाई किससे है, इसे राहुल गांधी ने देश को बताया। कहा कि मुकाबला किसी एक पार्टी या नरेंद्र मोदी नाम के व्यक्ति से नहीं है। लड़ाई एक ‘विशिष्ट शक्ति’ से है, वो शक्ति जो ईवीएम और संस्थाओं में निहित है।
उन्होंने कहा- ‘यह शक्ति आपका धन लूट रही है। नरेंद्र मोदी का काम तो सिर्फ इससे ध्यान हटाना है।’ मगर यह वक्तव्य सिरे से समस्याग्रस्त है। अगर आज सत्ता का स्रोत लोगों का वोट नहीं, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें हैं, तो आम चुनाव तो एक बार फिर उन्हीं मशीनों से होने जा रहा है। फिर विपक्ष के लिए उम्मीद कहां बचती है? और अगर आज सचमुच निर्णायक भूमिका ईवीएम की हो गई है, तो यह प्रश्न भी उठेगा कि इन मशीनों को चुनाव से हटवाने के लिए कांग्रेस या समूचे विपक्ष ने अब तक कुछेक बयानों को छोड़कर कौन-सा अभियान चलाया है?
इन सवालों को उठाने का मतलब ईवीएम को क्लीन चिट देना नहीं है। इन मशीनों के लेकर संदेह सचमुच गहराता गया है। चूंकि निर्वाचन आयोग ने इन संदेहों का निवारण करने और विश्वास का वातावरण बनाने की तनिक जरूरत भी महसूस नहीं की है, इसलिए इससे जुड़े सवाल बने हुए हैं। लेकिन अब जबकि चुनाव कार्यक्रम का एलान हो चुका है, विपक्ष का इसे प्रमुख मुद्दा बनाने का कोई तर्क नजर नहीं आता।
बेहतर होता कि इंडिया गठबंधन के नेता इस पर आत्म-निरीक्षण करते कि उन्होंने इस चुनाव के लिए अपनी तरफ से कौन-सा ऐसा सकारात्मक कार्यक्रम पेश किया है, जिसको लेकर आम जन में उत्साह जग सके? इन नेताओं ने साझा नीति और कार्यक्रम की कोई जरूरत ही नहीं समझी है। नतीजतन, उनका प्रयास महज सीटों का तालमेल बन कर रह गया है। इसी का परिणाम है कि अब ऐन वक्त पर उन्हें मोदी हटाओ के नकारात्मक एजेंडे पर चुनाव मैदान में उतरना पड़ रहा है।