रोजमर्रा की बढ़ती समस्याओं के कारण जमीनी स्तर पर जन-असंतोष का इजहार इतना साफ है कि उसे नजरअंदाज करना संभव नहीं रह गया है। अब सवाल सिर्फ यह है कि क्या यह जन-असंतोष मतदान केंद्रों के अंदर भी उसी अनुपात में व्यक्त हो रहा है?
लोकसभा चुनाव का पांचवां चरण खत्म होने के बाद चुनाव संबंधी जनमत सर्वेक्षण से जुड़े दो चर्चित व्यक्तियों ने जो कहा, उससे मतदान के अब तक के रुख के बारे में कुछ संकेत ग्रहण किए जा सकते हैँ। उनमें से एक ने क्रिकेट की शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए कहा कि दिलचस्प मुकाबला हो रहा है, जो लगता है अंतिम ओवर तक जाएगा। दूसरे विशेषज्ञ ने तो दो-टूक कहा कि अब सारी बात यहां आकर टिक गई है कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी 272 सीटें हासिल कर पाएगी या नहीं। उन्होंने संभावना जताई कि भाजपा इस लक्ष्य के कुछ सीटें पीछे रह जा सकती है। जाहिर है, यह जिस बिंदु से चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई थी, उसमें एक बड़े बदलाव का संकेत है। तब खुद दूसरे विशेषज्ञ की संस्था ने अपने मतदान-पूर्व सर्वेक्षण में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए की बड़ी जीत का अनुमान लगाया था। जिस पहले विशेषज्ञ का हमने जिक्र किया, वे तीसरे चरण तक टीवी चैनल पर इस बनती धारणा से संघर्ष करते सुने गए थे कि भाजपा को कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है।
बहरहाल, अब जमीनी स्तर पर रोजमर्रा की बढ़ती समस्याओं के कारण जन-असंतोष का इजहार इतना साफ है कि उसे नजरअंदाज करना संभव नहीं रह गया है। अब सवाल सिर्फ यह है कि क्या यह जन-असंतोष मतदान केंद्रों के अंदर भी उसी अनुपात में व्यक्त हो रहा है? यह भी अब एक हद तक साफ है कि इस बार मतदान प्रतिशत पिछली बार की तुलना में कम रहेगा। इसका नुकसान किसे ज्यादा होगा, इस पर बहस की गुंजाइश है, लेकिन यह निर्विवाद है कि ऐसा मतदाताओं के एक हिस्से में गहराई उदासीनता के कारण हुआ है। इसका ठोस असर क्या हुआ, यह मतगणना के दिन ही सामने आएगा। इस बीच हर चरण में रहा मतदान प्रतिशत और उससे संबंधित जानकारी को लेकर निर्वाचन आयोग के रुख ने विपक्षी एवं सिविल सोसायटी के एक बड़े हिस्से में आशंकाएं पैदा कर रखी हैं। मुमकिन है कि ये अंदेशे बेबुनियादी हों, लेकिन जो धारणाएं बनी हैं, वे चिंताजनक हैं। हैरतअंगेज है कि निर्वाचन आयोग इसमें निहित जोखिम को नजरअंदाज कर रहा है।