चूंकि धारा 370 हटाए जाने के बाद जनमत की पहली अभिव्यक्ति का मौका लद्दाख में ही आया, इसलिए इन चुनावों पर सारे देश की नजर थी। साफ है, वहां हुए इम्तिहान में भाजपा नाकाम रही। अब देखने की बात होगी कि क्या जम्मू-कश्मीर में नतीजा इससे अलग होगा?
लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद- करगिल के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की बुरी हार का संदेश साफ है। धारा 370 को खत्म करने के साथ केंद्र की भाजपा सरकार ने वहां विकास की जो ऊंची उम्मीदें जताई थीं, वे जमीन पर नहीं उतरीं। यहां ये बात जरूर याद कर लेनी चाहिए कि अगस्त 2019 में उठाए गए उस कदम का लद्दाख में उत्साह से स्वागत किया गया था। लद्दाख वह इलाका है, जहां उसके पहले भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा होने को लेकर जब-तब असंतोष उभरता रहता था। लेकिन धारा 370 की समाप्ति के चार साल बाद वहां के लोगों का मोह भंग हो गया नजर आता है। इसके संकेत पहले से थे। संभवतः वहां बढ़ते गए असंतोष में कुछ भूमिका अप्रैल 2020 के बाद लद्दाख सीमा पर चीन की फौज के कथित अतिक्रमण की भी है। हालांकि भारत सरकार ने चीन की घुसपैठ की बात का बार-बार खंडन किया है, लेकिन लद्दाख के लोगों का प्रत्यक्ष अनुभव कुछ और है। उनकी भावनाएं कई बार मीडिया रिपोर्टों से जरिए सामने आई हैं। जिन इलाकों में चुनाव हुए, वहां बेशक मुस्लिम आबादी काफी है। लेकिन उन क्षेत्रों में बौद्ध और हिंदू आबादी भी है।
इसलिए वहां से आए चुनाव नतीजों को सिर्फ मजहबी आधार पर हुए ध्रुवीकरण का परिणाम नहीं कहा जा सकता। अगर सिर्फ मुस्लिम मतदाता ही भाजपा के खिलाफ होते, उसे 26 निर्वाचित सीटों में से सिर्फ दो नहीं मिलतीं। इसलिए इन नतीजों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भावनात्मक कार्ड कुछ समय के लिए लोगों में उत्साह भर सकते हैं, लेकिन उनका असर स्थायी नहीं होता। दूसरा संदेश संभवतः यह है कि जब रोजी-रोटी और विकास की कसौटी पर प्रदर्शन निर्णायक पैमाना बन जाए, तो वर्तमान भाजपा सरकार के लिए लोगों के बीच अपने लिए समर्थन बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। चूंकि धारा 370 हटाए जाने के बाद पहली बार लद्दाख में ही जनमत की अभिव्यक्ति होनी थी, इसलिए इन चुनावों पर सारे देश की नजर थी। साफ है, वहां हुए इम्तिहान में भाजपा नाकाम रही। अब देखने की बात होगी कि क्या जम्मू-कश्मीर में नतीजा इससे अलग होगा?