कोलकाता में मशहूर अस्पताल में अगर महिला डॉक्टर सुरक्षित नहीं हैं, तो क्या उसकी सीधी जिम्मेदारी राज्य सरकार एवं उसके प्रशासन पर नहीं आती? इस सवाल का सीधा उत्तर देने के बजाय उग्र बातें करना कोई समाधान नहीं हो सकता।
कोलकाता को अपने ‘निर्भया क्षण’ से गुजरना पड़ रहा है। वहां के मशहूर आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल की एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और फिर उनकी हत्या के मामले ने सारे देश को झकझोर दिया है। सोमवार को देश भर में डॉक्टरों ने विरोध दिवस मनाया। लोगों के भड़के गुस्से के कारण मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपनी पुलिस को चेतावनी देनी पड़ी है कि हफ्ते भर के अंदर उसने मामला नहीं सुलझाया, तो वे जांच सीबीआई को सौंप देंगी। उधर उनके भतीजे और तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख नेता अभिषेक बनर्जी ने तो मांग कर दी है कि ऐसे जुर्म में शामिल “अपराधियों” को “एनकाउंटर” करने का कानून बनाया जाना चाहिए। उनका “एनकाउंटर” करने से मतलब शायद यही है कि जिस पर मुजरिम होने का शक हो, उसे सीधे गोली मार दी जाए। भारत में पिछले डेढ़ दशक से बनी राजनीतिक संस्कृति में ऐसी बातें स्वीकार्य हो गई हैं। वरना, इस तरह की सोच कानून के राज के मूलभूत सिद्धांत के विरुद्ध हैं और अक्सर ऐसी बातें प्रशासनिक नाकामी पर परदा डालने के लिए कही जाती हैं।
मुद्दा यह है कि अगर कोलकाता में एक महिला डॉक्टर सुरक्षित नहीं है, तो क्या उसकी सीधी जिम्मेदारी राज्य सरकार एवं उसके प्रशासन पर नहीं आती है? इस सवाल का सीधा उत्तर देने के बजाय उग्र बातें करना कोई समाधान नहीं हो सकता। गौरतलब है कि आरजी कार मेडिकल कॉलेज पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक है। 26 एकड़ में फैले इस अस्पताल में मरीजों को भर्ती करने के लिए 1200 बिस्तर हैं, जबकि ओपीडी में औसतन 2500 मरीज़ रोजाना आते हैं। इसके अलावा इमरजेंसी विभाग में भी एक हज़ार से अधिक मरीज़ रोज पहुंचते हैं। मगर वहां डॉक्टर तक सुरक्षित नहीं हैं। लाजिमी है कि इस घटना के बाद से देशभर के डॉक्टर गुस्से में हैं। सोमवार तक इस मामले में पुलिस ने अभियुक्त को गिरफ़्तार किया गया था। गिरफ़्तार अभियुक्त सीधे तौर पर अस्पताल से नहीं जुड़ा है। वह कोलकाता पुलिस के साथ काम करने वाला एक वॉलंटियर रहा है। जाहिर है, कोलकाता पुलिस नाराजगी के निशाने पर है।