लोहियावादी पार्टियां अब जातीय जनगणना के मुद्दे पर फिर से ओबीसी पहचान को जानदार बनाने के प्रयास में जुटी हैं। उस समय अत्यंत पिछड़ी जाति से आने वाले, ईमानदार छवि के उस नेता- कर्पूरी ठाकुर को सम्मानित करना भाजपा की एक कुशल रणनीति है।
कर्पूरी ठाकुर की दो खास विरासतें हैं। पहली यह वे पहले नेता हैं, जिन्होंने उत्तर भारत में अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण की शुरुआत की। इससे ओबीसी पहचान की राजनीति की जड़ें मजबूत हुईं। उनकी दूसरी विरासत यह है कि उन्होंने ओबीसी जातियों को दो एनेक्सरों में बांटा। इससे अत्यंत पिछड़ा जाति की राजनीति की जड़ें पड़ीं। यह दूसरी विरासत भारतीय जनता पार्टी के लिए काम की साबित हुई है। कर्पूरी ठाकुर की पहली विरासत ने उनकी वैचारिकी- यानी लोहियावादी धारा- से जुड़ी पार्टियों को उत्तर भारत की सियासत में केंद्रीय स्थल पर ला दिया। लेकिन उनकी दूसरी विरासत से उन पार्टियों के खिलाफ अत्यंत पिछड़ी जातियों की गोलबंदी की राह निकली। भाजपा ने इस गोलबंदी के जरिए लोहियावादी पार्टियों को सियासत के केंद्रीय स्थल से बेदखल कर दिया। इसलिए केंद्र की भाजपा सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान- भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया है, तो उसका संदर्भ आसानी से समझ में आता है।
अपने को प्रासंगिक बनाए रखने के संघर्ष में जुटी लोहियावादी पार्टियां अब जातीय जनगणना के मुद्दे पर फिर से ओबीसी पहचान को जानदार बनाने के प्रयास में जुटी हैं। उस समय अत्यंत पिछड़ी जाति से आने वाले, ईमानदार छवि के उस नेता को सम्मानित करना भाजपा की कुशल रणनीति है, जिसके लिए आज भी लोगों के दिल में सम्मान का भाव मौजूद है। यह अकारण नहीं है कि ठाकुर को भारत-रत्न दिए जाने की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी प्रशंसा में विभिन्न अखबारों में लेख लिखा। बिहार में कर्पूरी ठाकुर की जन्म शती के मौके पर उन्हें भारत-रत्न दिए जाने का अभियान आरजेडी और जेडी-यू जैसे दल चला रहे थे। केंद्र ने अचानक इस सम्मान का एलान कर उन दलों की यह दलील भी भोथरी करने की कोशिश की है कि भाजपा ओबीसी विरोधी पार्टी है। भाजपा को उम्मीद है कि इससे बिहार में उसके लिए चुनावी संघर्ष की अनुकूल स्थितियां बनेंगी। इसके साथ ही प्रतिनिधित्व एवं प्रतीक की राजनीति में अपनी महारत को भाजपा ने एक बार फिर दिखा दिया है।