राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

यही परिणति होनी है

जब हर चीज और हर सेवा को कारोबार मान लिया गया है, तो विश्वविद्यालय प्रशासनों का यह सोचना बेज़ा नहीं है कि संपत्तियों का अधिक से अधिक मौद्रिक मूल्य प्राप्त किया जाए। उन संपत्तियां को भी जो मुफ्त में विश्वविद्यालयों को दी गई थीं।

अमेरिका में मशहूर विश्वविद्यालयों द्वारा अपनी जमीन या अन्य संपत्तियों को बेचने की खबरें कई वर्षों से चर्चित हैं। आज की कारोबारी भाषा में इन्हें संपत्ति को मोनेटाइज करना कहा जाता है। नव-उदारवादी दौर में जब हर चीज और हर सेवा को कारोबार मान लिया गया है, तो विश्वविद्यालय प्रशासनों का यह सोचना बेज़ा नहीं है कि संपत्तियों का अधिक से अधिक मौद्रिक मूल्य प्राप्त किया जाए। यह दीगर बात है कि कभी जब शिक्षा को सामाजिक जरूरत माना जाता था, तब सार्वजनिक स्वामित्व वाली संपत्तियां मुफ्त में या बेहद रियायती दरों पर विश्वविद्यालय को दी गई थीं। बहरहाल, अब यह ट्रेंड भारत पहुंच गया है। दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) अपनी दो संपत्तियों को बेचने की तैयारी में है। तर्क है कि विश्वविद्यालय गंभीर वित्तीय संकट में है। इसलिए विश्वविद्यालय ने अपनी दो संपत्तियों- गोमती गेस्ट हाउस और 35, फिरोज शाह रोड को बेचने की योजना बनाई है। इसके अलावा शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिख कर जेएनयू ने अपनी संपत्तियों पर चल रहे 12 राष्ट्रीय संस्थानों का किराया मांगने का इरादा भी जताया है।

शिक्षक संगठनों ने उचित ही इस कथित वित्तीय संकट के लिए सरकारी नीति को जिम्मेदार ठहराया है। उनके मुताबिक जब मुद्रास्फीति के अनुपात में सरकार उच्च शिक्षा का बजट नहीं बढ़ा रही है, तो ऐसी स्थिति आनी ही है। गौरतलब है कि केंद्र पहले ही शोध अनुदान, लाइब्रेरी फंड आदि में कटौती कर चुका है। सवाल है कि इस नीति का क्या परिणाम होगा? जाहिर है, धीरे-धीरे यह सोच लागू कर दी जाएगी कि विश्वविद्यालय अपने संसाधन खुद जुटाएं। नतीजतन शिक्षा इतनी महंगी हो जाएगी कि वह आम परिवारों की पहुंच से बाहर हो जाएगी। मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य तकनीकी शिक्षा के मामले में ऐसा पहले ही हो चुका है। अब सामान्य शिक्षा को भी सुविधा-संपन्न तबकों का विशेषाधिकार बनाया जा रहा है। इसका एक परिणाम यह भी होगा कि देश सामान्य परिवारों से आने वाली प्रतिभाओं की सेवा से वंचित हो जाएगा। इस सिलसिले में यह तथ्य सबको याद रखना चाहिए कि शिक्षा, शोध और विज्ञान में बिना सार्वजनिक बड़े निवेश के कोई समाज आगे नहीं बढ़ा है।

Tags :

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *