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मध्य-पूर्व में क्या हल?

israel palestine warImage Source: ANI

israel palestine war: दो राष्ट्र समाधान का लागू ना होना और दुनिया के बदले समीकरण मध्य-पूर्व में नई बनी परिस्थितियों की जड़ में हैं। दोनों पक्षों को अब युद्ध ही समाधान नजर आने लगा है। अब इसके जो नतीजे हों, दुनिया को उसके लिए तैयार रहना चाहिए।

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दुनिया में चिंता गहराई

मध्य-पूर्व में युद्ध इजराइल- फिलस्तीन की सीमा से निकल कर क्षेत्रीय रूप ग्रहण कर चुका है। इससे दुनिया में चिंता गहराई है। वहां बन रहे हालात के संभावित आर्थिक एवं अन्य अंतररराष्ट्रीय परिणामों को लेकर भारत सहित विभिन्न देशों के अंदर चिंता जताई जा रही है। लेकिन क्या इस समस्या का कोई समाधान है? मसले की जड़ में फिलस्तीनी राष्ट्र का सवाल है। जब एक-ध्रुवीय दुनिया थी, तब अमेरिका के संरक्षण और नॉर्वे की मध्यस्थता में इजराइल और फिलस्तीनियों के प्रतिनिधि संगठन- पीएलओ के बीच ओस्लो समझौता कराया गया था, जिसमें दो-राष्ट्र समाधान को दोनों पक्षों ने स्वीकार किया।

इसका अर्थ था कि फिलस्तीनियों का अपना स्वतंत्र राष्ट्र बनेगा और इजराइल और नया फिलस्तीनी राष्ट्र साथ-साथ अस्तित्व में रहेंगे। यह समाधान साकार हो गया होता, तो पश्चिम एशिया में अशांति एवं युद्ध की जड़ खत्म हो जाती। लेकिन समझौता करने के बाद इजराइल इसे लागू करने से मुकरता रहा। उधर अमेरिका और उसके साथी पश्चिमी देश कभी इस पर अमल कराने को लेकर गंभीर नहीं हुए। नतीजा हुआ कि यह जख्म अब नासूर बन चुका है।

इस बीच दुनिया के समीकरण बदल गए

इस बीच दुनिया के समीकरण बदल गए हैं। अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय या विश्व शक्तियों का मतलब सिर्फ अमेरिका और उसके साथी देश नहीं रह गए हैं। चीन के उदय और रूस के फिर से खड़ा होने से मध्य-पूर्व सहित दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में समीकरण बदल गए हैं। दो राष्ट्र समाधान का लागू ना होना और दुनिया के बदले समीकरण मध्य-पूर्व में नई बनी परिस्थितियों- जो निर्विवाद रूप से खतरनाक हैं- की जड़ में हैं।

यह साफ है कि पिछले एक साल में (जब से मौजूदा युद्ध का दौर शुरू हुआ है) पश्चिमी देश निष्पक्ष मध्यस्थ से ज्यादा इजराइल के समर्थक के रूप में नज़र आए हैं। ऐसे में युद्ध रोकने के लिए उनके हस्तक्षेप के प्रभावी होने की संभावना काफी कम है। नई उभरी शक्तियों की ताकत अभी इतनी नहीं है कि वे अपनी इच्छा के मुताबिक हल करवा सकें। ऐसे में दोनों पक्षों को युद्ध ही समाधान नजर आने लगा है। अब इसके जो नतीजे हों, दुनिया को उसके लिए तैयार रहना चाहिए।

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