इजराइली कंपनियों ने फिलस्तीनी मजदूरों को काम से निकाल दिया। तब इजराइल ने भारत से मजदूर मंगाने की योजना बनाई और भारत सरकार से समझौता किया। उसके बाद जो कुछ सामने आया, वह भारत में बेरोजगारी से फैली दुर्दशा की कहानी है।
खबर नई नहीं है, लेकिन एक जारी घटनाक्रम का नया संस्करण है। वैसे यह घटनाक्रम भी नया है। बल्कि भारत की जमीनी स्तर पर अधिक मारक होती जा रही बदहाली का सिर्फ एक अध्याय है। फिर भी ना तो ऐसे घटनाक्रमों को नजरअंदाज किया जा सकता है और ना ही उनसे जुड़ी हर सामने आने वाली सूचना से नज़र हटाई जानी चाहिए। इसलिए कि ये उस कहानी का हिस्सा हैं, जो भारत के उदय की तमाम अपेक्षाओं पर ग्रहण लगाती हैं। ताजा सूचना यह है कि इजराइल में युद्ध के कारण लगातार भीषण होती जा रही स्थितियों के बीच भारतीय श्रमिकों का एक और जत्था वहां रवाना हुआ है। इस बार बारी तेलंगाना के श्रमिकों की है। इसके पहले उत्तरत प्रदेश और हरियाणा में ऐसे श्रमिकों के चयन के लिए कैंप लगे थे। उसके बाद गुजरे महीनों में इजराइल में हालात और बिगड़े हैं। युद्ध के खत्म होने की कोई संभावना बनती नहीं दिखती। बल्कि खून-खराबा और तेज ही हुआ है। इसी युद्ध के कारण इजराइल में श्रमिकों की कमी हुई। कारण यह था कि इजराइली कंपनियों ने फिलस्तीनी मजदूरों को काम से निकाल दिया।
उसके बाद इजराइल ने भारत से मजदूर मंगाने की योजना बनाई और इसके लिए भारत सरकार ने उससे सहज समझौता कर लिया। उसके बाद जो कुछ सामने आया, वह भारत में बेरोजगारी से फैली दुर्दशा की कहानी है। हरियाणा में लगे कैंप के दौरान मजदूर यह कहते सुने गए कि भारत में भूख से मरने से बेहतर है कमाने के लिए इजराइल जाकर जान को जोखिम में डालना। अब हैदराबाद के करीब चार दिन चले भर्ती अभियान के लिए 2,209 निर्माण मजदूरों ने पंजीकरण कराया था। इन मजदूरों में से 905 लोगों को इजराइल जाने के लिए चुना गया। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में लगे कैंप में चयन के लिए नौ हजार से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। तब उत्तर प्रदेश से 5,087 और हरियाणा से 530 उम्मीदवारों को नौकरी के लिए चुना गया था। भर्ती टीम के मुताबिक इजराइल जाने वाले मजदूरों को जो सैलरी मिलेगी, वह भारतीय मुद्रा में 1.2 लाख से लेकर 1.38 लाख रुपये तक बैठेगी।