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एक और दांव नाकाम

जिन देशों के प्रतिनिधि स्विट्जरलैंड सम्मेलन में गए, उनमें से अनेक ने अंतिम वक्तव्य पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया। इन देशों में भारत भी है। दरअसल, ब्रिक्स समूह से जुड़े तमाम देशों ने इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर नहीं किए।

यूक्रेन के सवाल पर रूस को घेरने का एक और पश्चिमी दांव नाकाम हो गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध पर स्विट्जरलैंड में एक शांति सम्मेलन का आयोजन किया गया। खबरों के मुताबिक इसमें कुल 160 देशों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन वास्तव में 92 देशों ने ही वहां प्रतिनिधि भेजे। रूस को इसमें नहीं बुलाया गया। इससे यह सवाल आरंभ से मौजूद था कि जब युद्ध से संबंधित एक पक्ष वहां नहीं होगा, तो शांति वार्ता किसके बीच होगी? इसीलिए यह धारणा बनी कि मकसद शांति स्थापित करने के बजाय रूस के खिलाफ वैश्विक गोलबंदी है।

सम्मेलन के दौरान इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मिलोनी ने यह स्पष्ट भी कर दिया, जब उन्होंने कहा कि अगर रूस “विश्व समुदाय” की बात नहीं मानेगा, तो उसे ऐसा करने को मजबूर किया जाएगा। चीन ने सम्मेलन में जाने से पहले ही इनकार कर दिया था। जिन देशों के प्रतिनिधि वहां गए, उनमें से लगभग 13 ने अंत में जारी हुए वक्तव्य पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया।

इन देशों में भारत भी है। भारतीय प्रतिनिधि पवन कपूर ने कहा कि स्थायी शांति लाने के लिए यह आवश्यक था कि सभी संबंधित पक्षों को यहां बुलाया जाता। दरअसल, सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि ब्रिक्स समूह से जुड़े तमाम देशों ने इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर नहीं किए। इनमें ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, यूएई शामिल हैं। इस तरह ग्लोबल साउथ के देशों ने यूक्रेन संकट पर अपना तटस्थ रुख बरकरार रखा है। मतलब यह हुआ कि स्विट्जरलैंड सम्मेलन पश्चिमी देशों के रुख को फिर से जताने का मौका भर बन कर रह गया।

वैसे इस सम्मेलन से अपेक्षाएं कितनी कम थीं इसका अंदाजा इससे ही लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यहां आने के बजाय अपने चुनाव अभियान के लिए चंदा इकट्ठा करने के समारोह में जाने को प्राथमिकता दी। सम्मेलन में उभरे स्वर सुनने के लिए उन्होंने उप राष्ट्रपति कमला हैरिस को वहां भेजा। हैरिस और उनके सहमना नेता इस सम्मेलन की नाकामी से क्या संदेश ग्रहण करेंगे, कहना कठिन है। लेकिन एक संदेश साफ है। यूक्रेन विवाद पर वैश्विक गतिरोध अभी भी जहां का तहां है।

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