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जिस पर गर्व है

इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण को इस दौर में भारत सरकार ने अपने विकास का खास पोस्टर बनाया है। इसे दुनिया में तारीफ भी मिली है। मगर जाहिर यह हो रहा है कि पोस्टर के खंभे कमजोर रेत पर खड़े हैं।

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री ने कहा है कि सड़कों में गड्ढे हों, तो उन पर टोल नहीं वसूला जाना चाहिए। लेकिन गडकरी को दरअसल बताना यह चाहिए था कि आखिर ऐसी सड़कें बननी ही क्यों चाहिए? इसे संभवतः अधिक सटीक रूप में इस तरह पूछा जा सकता है कि आखिर सरकारी विभागों को ऐसी सड़कों को मंजूरी ही क्यों देनी चाहिए? जिस रोज गडकरी ने यह बात कही, उसी दिन लोकसभा में नव-निर्वाचित स्पीकर ओम बिरला को बधाई देते समय, भले हंसी-मजाक के लहजे में ही, लेकिन इस गंभीर हकीकत की तरफ अखिलेश यादव ने सबका ध्यान खींच लिया कि स्पीकर के आसन के पीछे की खूबसूरत दीवार पर ऊपर से लगाया सीमेंट नजर आ रहा है। नए संसद भवन के ड्रेनेज सिस्टम पर तो पहले ही सवाल उठ चुका है। कुछ रोज पहले वायरल हुए एक वीडियो में बहुचर्चित अटल सेतु में पड़ी दरार नजर आई थी।

उसके पहले जी-20 शिखर सम्मेलन के समय नई दिल्ली में बने प्रगति टनल के खराब डिजाइन और स्तरहीन निर्माण की खबर चर्चित हो चुकी है। बल्कि जी-20 के दौरान ही जब अचानक बारिश हो गई, तो मुख्य सम्मेलन स्थल पर बाढ़ जैसा जो नज़ारा बना, उसे सारी दुनिया ने देखा था। ध्यानार्थ है कि ये सब फ्लैगशिप परियोजनाएं हैं। इनसे भी अधिक प्रतीकात्मक महत्त्व की परियोजना पर गौर करना हो, तो अयोध्या चल सकते हैं। वहां बने राम मंदिर की छत से पानी टपकने की जानकारी खुद मंदिर के महंत आचार्य सत्येंद्र दास ने दी है। उधर मंदिर तक पहुंचने के लिए बना 13 किलोमीटर लंबा रामपथ जगह-जगह सड़क धंस गया है और मंदिर के पास ही बने नए रेलवे स्टेशन की दीवार गिर गई है। यह सब कैसे संभव होता है? लेकिन यही हकीकत है। सरकार से सवाल है कि क्या इसमें किसी घटना के लिए ऐसी जवाबदेही तय की गई है, जो सारे देश के लिए मिसाल बनती? आखिर इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण को ही इस दौर में भारत ने अपने विकास का पोस्टर बनाया है, जिसे दुनिया में तारीफ भी मिली है। मगर जाहिर यह हो रहा है कि पोस्टर के खंभे कमजोर रेत पर खड़े हैं।

By NI Editorial

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