निहितार्थ यह कि महंगाई एक बड़ी समस्या बनी हुई है। सरकार और नीतिकार उसके आगे लाचार नजर आते हैं। संभवतः इसलिए कि उनके उपाय बेअसर हो चुके हैं और अपनी सीमाओं के कारण नए उपाय सोचने की स्थिति में वे नहीं हैं।
जुलाई की मुद्रास्फीति दर के बारे में ताजा आंकड़े सुकून पहुंचाने वाले हैं। इनके मुताबिक बीते महीने महंगाई की दर पांच साल के सबसे निचले स्तर पर दर्ज हुई। यह महंगाई दर को चार प्रतिशत तक सीमित रखने के भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य से भी नीचे रही- सिर्फ 3.5 फीसदी। जाहिर है, यही सूचना मीडिया हेडलाइन्स में आई है। मगर राहत सूर्खियों से नीचे जाते ही हवा की तरह उड़ जाती है। साफ हो जाता है कि ये सारा प्रभाव एक साल पहले के बेहद ऊंचे आधार के कारण पैदा हुआ है। जुलाई 2023 में महंगाई दर 7.1 फीसदी थी। तब खाद्य पदार्थों की कीमत में असामान्य वृद्धि हुई थी। इस बार सब्जियों, फल, मसालों और एक हद तक दूध की कीमत में पिछले जुलाई की तुलना में कम वृद्धि हुई। उसका असर हेडलाइन आंकड़ों में दिखा है। लेकिन बीते महीने दालों की कीमत 14.8 प्रतिशत, अनाज की 8.1 और मांस- मछली- अंडा के दाम 6 फीसदी बढ़े। उधर मुख्य (कोर) मुद्रास्फीति पर ध्यान दें, तो इसमें जून की तुलना में बढ़ोतरी हुई।
जून में यह मुद्रास्फीति 3.1 फीसदी थी, जबकि लाई में 3.4 फीसदी रही। जून में कुल मुद्रास्फीति दर 5.1 प्रतिशत दर्ज हुई थी। खुद रिजर्व बैंक का अनुमान है कि सकारात्मक बेस इफेक्ट सितंबर आते-आते खत्म हो जाएगा। उसके बाद महंगाई दर फिर से उसकी लक्ष्य सीमा से ऊपर चली जाएगी। अपने इसी आकलन के कारण रिजर्व बैंक ने कुछ रोज पहले ब्याज दरों को जस का तस बनाए रखने का एलान किया था। वैसे भी यह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि महंगाई दर 3.5 फीसदी रहने का भी मतलब यह है कि जून की तुलना में कीमतें औसतन साढ़े तीन प्रतिशत बढ़ीं। जब लोग पहले से ही महंगाई की चुभन से परेशान हैं, तो महीने भर में इतनी कीमतें बढ़ जाना कोई राहत की बात नहीं हो सकती। निहितार्थ यह कि महंगाई एक बड़ी समस्या बनी हुई है। सरकार और नीतिकार उसके आगे लाचार नजर आते हैं। संभवतः इसलिए कि उनके उपाय बेअसर हो चुके हैं और अपनी सीमाओं के कारण नए उपाय सोचने की स्थिति में वे नहीं हैं।