राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

आत्म-निरीक्षण की जरूरत

Image Source: ANI

पड़ोसी देशों का भारत से रिश्ता वहां के किसी एक राजनीतिक खेमे पर इतना निर्भर क्यों है? इसका आधार पूरे सियासी दायरे में क्यों नहीं है? फिर उन देशों में भारत विरोधी भावनाओं के लिए खुद भारत के सत्ताधारी नेता कितने जिम्मेदार हैं?

विदेश नीति के मोर्चे पर भारत को गहरे आत्म-निरीक्षण की जरूरत है, लेकिन वर्तमान सरकार से इसकी अपेक्षा निराधार है। इस सरकार की पहचान प्रतिकूल स्थितियों में अनुकूलता के तत्व गढ़ने) की रही है। यही संकेत फिर मिला, जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर वॉशिंगटन स्थित एशिया सोसायटी के संवाद में शामिल हुए। वैसे उनसे यह सुनना कर्णप्रिय लगा कि पड़ोसी देशों की अंदरूनी घटनाएं भारत की इच्छा के मुताबिक घटे, ऐसी अपेक्षा भारत नहीं रखता। संदर्भ लगभग दो महीने पहले बांग्लादेश में हुए सत्ता पलट और इसी हफ्ते श्रीलंका में आए चुनाव नतीजों का था। पांच अगस्त को शेख हसीना के देश छोड़ने पर मजबूर होने के बाद से बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाएं ऊफान पर हैं। इधर समझा जाता है कि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनूरा कुमार दिसानायके और उनकी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना परंपरागत रूप से “भारत विरोधी” रही हैं। मतलब यह कि दो महीनों के अंदर दो पड़ोसी देशों में भारतीय विदेश नीति के लिए नई चुनौतियां पैदा हुई हैं। आत्म-निरीक्षण का विषय यह होना चाहिए कि आखिर पड़ोसी देशों का भारत से रिश्ता वहां के किसी एक राजनीतिक खेमे पर इतना निर्भर क्यों है? इसका आधार पूरे सियासी दायरे में व्यापकता लिए क्यों नहीं है?

आत्म-निरीक्षण का दूसरा विषय है कि उन देशों में भारत विरोधी भावनाओं के लिए खुद भारत के सत्ताधारी नेता कितने जिम्मेदार हैं? अभी हाल में गृह मंत्री अमित शाह झारखंड में चुनाव प्रचार में गए, तो वहां उन्होंने बांग्लादेशियों के बारे में कुछ ऐसा कहा, जिससे बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाएं फिर भड़क उठीं। शाह पहले भी बांग्लादेशियों के लिए “दीमक” जैसे शब्द बोल चुके हैं। इसी तरह तमिलनाडु में चुनाव के मौके पर प्रधानमंत्री ने कच्चतिवू द्वीप का मसला जोरशोर से उठाया था, जिसको लेकर श्रीलंका में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। विडंबना यह है कि चुनाव के बाद कच्चतिवू के सवाल को भुला दिया गया। सत्ता के शिखर पर बैठे नेता जब चुनावी गणना के मुताबिक दूसरे देशों से संबंधित मुद्दे गरमाते हैं, तो क्या उन्हें इसके उन देशों में संभावित असर का ख्याल नहीं रहता? ऐसे बिंदुओं पर जयशंकर चुप ही रहे।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *