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मध्य वर्ग की मुश्किलें

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महंगाई और सामान्य आमदनी ना बढ़ने से ग्रस्त भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे पहली चोट 50,000 रुपये मासिक से कम आय वाले परिवारों पर पड़ी। अब 50 हजार से एक लाख रुपए आमदनी के बीच वाले परिवार प्रभावित हो रहे हैं।

बाजार की एजेंसियां जब मध्य वर्ग के ह्रास की बातें करने लगें, तो समझा जा सकता है कि आर्थिक संकट कितना गहरा हो चुका है। मध्य वर्ग किसी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है। यही तबका है, जिसके उपभोग की आकांक्षाएं लगातार बढ़ रही होती हैं। मध्य वर्ग का आकार बढ़ रहा हो, तो अर्थव्यवस्था में मांग, निवेश, उत्पादन और वितरण का चक्र स्वाभाविक रूप से तेज होता जाता है। यह आर्थिक विकास का वास्तविक पैमाना है। मगर भारत में कहानी पलट चुकी है। सबसे पहले इससे छोटी कारों आदि जैसी टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं बनाने वाली कंपनियां प्रभावित नजर आईं।

फिर रोजमर्रा के उपभोग की वस्तुओं की उत्पादक कंपनियों के अधिकारी कहते सुने गए कि भारत में जो मध्य वर्ग होता था, वह सिकुड़ रहा है, जिससे कंपनियों का कारोबार प्रभावित हुआ है। फिर वित्तीय अखबारों में इसकी पड़ताल करते हुए लंबी रिपोर्टें छपने लगीं कि आखिर मध्य वर्ग को हुआ क्या है। इनमें भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों का उल्लेख कर बताया गया कि सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में घरेलू बचत का अनुपात 50 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है।

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कारण अनसिक्योर्ड ऋण की मात्रा का बढ़ना है, जिसे चुकाने की जद्दोजहद में बचत के लिए कुछ बचता ही नहीं है। अब मार्केट एजेंसियां इस पर रिपोर्ट जारी कर रही हैं। ताजा रिपोर्ट मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स की आई है।

उसके मुताबिक पहले रूटीन नौकरियां मध्य वर्ग का आधार थीं, लेकिन ऑटोमेशन एवं नई तकनीक के उपयोग के कारण ये तेजी से खत्म हो रही हैं। मार्सेलस ने दूसरी वजह घरों का बजट बिगड़ना बताया है। स्पष्टतः इसकी वजह तेजी से बढ़ी महंगाई के कारण परिवारों की घटी वास्तविक आय है। एक अन्य रिपोर्ट में जिक्र है कि महंगाई और सामान्य आमदनी ना बढ़ने से ग्रस्त भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे पहली चोट 50,000 रुपये मासिक से कम आय वाले परिवारों पर पड़ी। अब 50 हजार से एक लाख रुपए आमदनी के बीच वाले परिवार प्रभावित हो रहे हैं। यही तबका मुख्य उपभोक्ता वर्ग रहा है। उसके बिगड़े का नतीजा है कि पूरी उपभोक्ता अर्थव्यवस्था दुश्चक्र फंसती नजर आ रही है।

By NI Editorial

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