आम समझ है कि कूटनीति एक बेहद गंभीर कार्य है, जिसका अत्यंत बारीक दायरा होता है। यह सोशल मीडिया ट्रोल्स की समझ से बाहर की बात है। इसलिए इसे पेशेवर कूटनीतिकों के दायरे में ही रखना उचित होता है।
मालदीव के साथ रिश्ता अब ब्रेकिंग प्वाइंट पर पहुंचता नजर आ रहा है। फिलहाल यह साफ है कि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइजू ने चीन को अपनी विदेश नीति में केंद्रीय स्थान दे दिया है। ऐसा वे भारत के हितों और भावनाओं की कीमत पर कर रहे हैं। हाल की चीन यात्रा के बाद उनकी सरकार का रुख और सख्त हुआ है। नतीजतन, मालदीव ने भारत से अपने उन सैनिकों को 15 मार्च तक वापस बुला लेने को कह दिया है, जो वहां उन दो हेलीकॉप्टरों की देखरेख के लिए तैनात थे, जिन्हें भारत ने मालदीव को उपहार के रूप में दिए थे। अनुमान लगाया जा सकता है कि हाल में दोनों देशों के संबंधों में बढ़ी कड़वाहट का असर मोइजू सरकार के रुख पर पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्षद्वीप दौरा, उसके बाद सोशल मीडिया पर पर्यटन के लिए मालदीव के विकल्प के रूप में लक्षद्वीप को प्रचारित करने की मुहिम, उस पर मालदीव के तीन नेताओं की मोदी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल और फिर भारत में सोशल मीडिया पर जताए गए अनियंत्रित गुस्से ने हालात सुलगा दिए हैं।
इस बीच नई दिल्ली स्थिति मालदीव के राजदूत को भारतीय दूतावास में भी बुलाया गया था। अब यह विचारणीय है कि पास-पड़ोस के देश भारत से क्यों बिदकते जा रहे हैं? और अगर किसी देश के ऐसा करने का संकेत मिले, तो हालात को संभालने का सही रास्ता क्या है? आम समझ है कि कूटनीति एक बेहद गंभीर कार्य है, जिसका अत्यंत बारीक दायरा होता है। यह सोशल मीडिया ट्रोल्स की समझ से बाहर की बात है। इसलिए इसे पेशेवर कूटनीतिकों के दायरे में ही रखना उचित होता है। यह ठोस समझ बन चुकी है कि विदेश संबंधों और उनसे जुड़े विवादों का घरेलू राजनीति में लाभ उठाने की रणनीति देश के दीर्घकालिक हितों को क्षति पहुंचाती है। इसलिए ऐसे नजरिए पर अब पुनर्विचार की जरूरत है। कूटनीति शतरंज का एक लंबा खेल है, जिसमें हर दांव के बाद अगले दांव की संभावना बनी रहती है। अब मोइजू ने एक दांव चला है, लेकिन बात यहां से भी संभाली जा सकती है।