बोलचाल में भले भारत को 140 करोड़ लोगों का बाजार कहा जाता हो, लेकिन असल में बाजार से मतलब उन लोगों से होता है, जिनके पास क्रय शक्ति हो। प्रीमियम गुड्स के लिहाज से देखें, तो फिलहाल भारतीय बाजार में छह करोड़ लोग ही शामिल हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां जब भारत कहती हैं, तो उनका तात्पर्य किस बाजार से होता है, इसका अनुमान लगाने का एक आधार अब मिला है। पश्चिम के इन्वेस्टमेंट बैंक किसी अर्थव्यवस्था के आकार का आकलन वहां मौजूद उपभोक्ता वर्ग की आमदनी और क्रय शक्ति के आधार पर लगाती हैं। इसलिए बोलचाल में भले भारत को एक अरब 40 करोड़ लोगों का बाजार कहा जाता हो, लेकिन असल में किसी कंपनी की निगाह में बाजार से मतलब उन लोगों से होता है, जो उसके उत्पाद खरीद सकने की क्षमता रखते हों। तो अगर महंगी वस्तुओं, (जिन्हें कंपनियों की भाषा में प्रीमियम गुड्स कहा जाता है) के उत्पादकों की नजर से देखें, तो भारत का कुल बाजार छह करोड़ लोगों का है। यह बात अमेरिकी इन्वेस्टमेंट गोल्डमैन शैक्स ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कही है। उसने यह अनुमान लगाया है कि 2027 तक भारतीय बाजार दस करोड़ लोगों का हो जाएगा।
गोल्डमैन शैक्स ने प्रीमियम गुड्स के बाजार में उन लोगों को शामिल किया है, जिनकी सालाना आमदनी दस हजार डॉलर (यानी लगभग साढ़े आठ लाख रुपये) से ज्यादा है। बैंक का अनुमान है कि 2015 में इस आय वर्ग में दो करोड़ 40 लाख लोग थे। पिछले नौ वर्षों में इन तबके की संख्या दो गुना से भी ज्यादा बढ़ी है। इसका फायदा जेवरात और महंगी कारों के उद्योग के साथ-साथ सेवा क्षेत्र में पर्यटन, रेस्तरां, होटल, और हेल्थकेयर के कारोबार को भी मिला है। चूंकि आने वाले तीन वर्षों में इस आय वर्ग के लोगों की संख्या में और वृद्धि का अनुमान है, इसलिए ऐसे कारोबार से जुड़ी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार का आकर्षण बढ़ना स्वाभाविक है। भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था को अगर समझना हो, तो ये आंकड़े बेहद काम के हैं। आखिर जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं, अक्सर उसमें वही पार्टियां सफल होती हैं, जिन्हें समाज के समृद्ध वर्ग का समर्थन हासिल हो। फिर वे पार्टियां उस वर्ग के अनुकूल नीतियां लागू करती हैं। पूरा सिस्टम उन तबकों के अनुरूप चलता है। इसलिए सरकारों की नीतियों और प्राथमिकताओं को समझने के लिए जरूरी होता है कि इस तबके की मांगों को समझा जाए।